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इसी पुस्तक से -
स्त्रियों को समझना जितना कठिन है कदाचित उतना ही कठिन पुरुषों को भी समझना है। स्त्रियाँ रो-धोकर अपनी बात रख देती हैं समाज के समक्ष परन्तु पुरुष रख पाते हैं क्या…? ‘स्त्रियों के पेट में बात नहीं पचती है’ कदाचित यह कहावत बहुतायत में स्त्रियों के द्वारा सुख-दुःख सभी बातों को येन-केन प्रकारेण समाज के मध्य रख ही देती हैं, तो उन्हें समझना कठिन कहाँ हुआ…! कठिन तो उस वर्ग के लिए हुआ जो अपनी बात किसी के आगे रख ही नहीं पाता। 'मर्द को दर्द नहीं होता' कहावत की इतनी मोटी परत उसके चरित्र पर चढ़ा दिया जाता है कि घाव-पर-घाव भले हो जाय परन्तु उसके आँखों से अश्रु नहीं निकलने चाहिए, यदि गलती से निकल गया तो एक स्वर गूँजता हुआ आकर उसके अन्तर्मन पर सीधे चोट करता है, 'मर्द होकर रोते हो…!'
तो प्रस्तुत संकलन में उसी पीड़ित पुरुषों की कष्टदायक कहानियाँ हैं जो लेखकों ने अपनी लेखनी के माध्यम से लघुकथा के रूप में लिखकर हमें प्रेषित की हैं|
| धन्यवाद |
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