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दो शब्द, लम्हों से लिपटे …..
कवि कैसे बनते हैं कभी सोचा है क्या? आईये विचार करते हैं।
कोई कहता है कि जब मनुष्य बहुत दुखी होता है तो कवि बन जाता है। कोई कहता है कि जब मनुष्य बहुत ही सुखी होता है तो कवि बन जाता है। पता नहीं कैसे कोई कवि बनता है पर यह तो है कि अनुभवों के आधार पर ही कविताएं फूटती हैं। कवि जो अपने आसपास देखता है, कविताओं के रूप में ढालता है।
मेरे सत्तर सालों के अनुभवों ने मुझे यही सिखाया है कि जो मैंने देखा उसको मैने कविताओं में ढाला तो मुझे प्रसन्नता होती है।
कुछ इसी प्रकार सृजित हुई मेरी अठारहवीं काव्य पुस्तिका *लम्हों से झांकती मेरी कविताएं*
आईये समीक्षा करें ।
पाठन का आनंद लें ।
सुभाष सहगल
"लम्हों से लिपटी मेरी कविताएं"
इधर से झांकें,
उधर से झांकें,
दाएं से कुछ बाएं से,
ऊपर से, कुछ...
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