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पुलिस स्टेशन के एक कमरे मे एक कोने मे डरा सहमा बैठा था साबुन. जी हाँ, अब उसका एक नाम था. जो पुलिस की कंप्लेंट रजिस्टर मे दर्ज़ हुआ था. एक तरफ पीला बल्ब जल रहा था. एक तरफ एक टेबल और एक कुर्सी थी. कुर्सी पर था इंस्पेक्टर नीरज और टेबल पर रखी थी साबुन की वही टिकिया जो वो मासूम चुराकर भागा था. साबुन की ज़िन्दगी का ये सबसे भय से भरा दिन था. सिर्फ एक साबुन के लिए वो चोर बन गया था, यहाँ तक कि वो खुद साबुन हो गया था.
" क्यों चाहिए था तेरे को साबुन... साफ सफाई के लिए... उसका क्या जो तेरे जिंदगी पर दाग़ लग गया.. वो किसी साबुन से साफ होगा क्या.. "
नीरज ने बोलना शुरू किया. बच्चे के पास कोई उत्तर नहीं था. एक कोने मे बैठा बस उस काले भद्दे पुलिस वाले को देख रहा था. इंस्पेक्टर...
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