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पुलिस स्टेशन के एक कमरे मे एक कोने मे डरा सहमा बैठा था साबुन. जी हाँ, अब उसका एक नाम था. जो पुलिस की कंप्लेंट रजिस्टर मे दर्ज़ हुआ था. एक तरफ पीला बल्ब जल रहा था. एक तरफ एक टेबल और एक कुर्सी थी. कुर्सी पर था इंस्पेक्टर नीरज और टेबल पर रखी थी साबुन की वही टिकिया जो वो मासूम चुराकर भागा था. साबुन की ज़िन्दगी का ये सबसे भय से भरा दिन था. सिर्फ एक साबुन के लिए वो चोर बन गया था, यहाँ तक कि वो खुद साबुन हो गया था.
" क्यों चाहिए था तेरे को साबुन... साफ सफाई के लिए... उसका क्या जो तेरे जिंदगी पर दाग़ लग गया.. वो किसी साबुन से साफ होगा क्या.. "
नीरज ने बोलना शुरू किया. बच्चे के पास कोई उत्तर नहीं था. एक कोने मे बैठा बस उस काले भद्दे पुलिस वाले को देख रहा था. इंस्पेक्टर नीरज उठा और कमरे का दरवाज़ा बंद करने लगा. बच्चा और डर गया. वो अनजान था कि आने वाले समय मे उसके साथ क्या होने वाला है. वो बहोत छोटा था लेकिन वो ये जानता था कि पुलिस चोर को मारती है. दरवाजा बंद करके पलटा नीरज. बच्चे के पास आया. उसने एक ऊँगली साबुन के चेहरे पर गिरे बालो के लट जो एक तरफ किया. बच्चे की चमकती आँखों मे डर साफ दिख रहा था. खामोश और सदमे मे डूबा चेहरा. इंस्पेक्टर ने अब ऊँगली बच्चे के होंटो तक लाया. हलके गुलाबी और पतले होंटो पर उसने ऊँगली रख दी. वो हरामी पुलिस वाला बच्चे को मोलेस कर रहा था.
" कितना क्यूट है रे तू... चल कपडे उतार.. "
पूरी तरह हैरान हो गया था साबुन. उसे कुछ कुछ समझ आ रहा था. उसने पुलिस वाले की आँखों मे वो गन्दगी झाँक लिया था, जिस गन्दगी को बच्चा जानता तो नहीं था, लेकिन महसूस कर सकता था. बच्चे ने तुरंत ना मे सर हिला दिया.
" देख साबुन.. आज से तेरा नाम साबुन है ... और तू एक चोर है.. चोर वही करेगा जो पुलिस कहेगा.. पुलिस कौन.... मै... चोर कौन... तू.... तो चल तेरा ये शर्ट उतार... "
अपने हाथो से इंस्पेक्टर नीरज ने बच्चे के शर्ट को खोलने की कोशिश किया.. बच्चे ने अचानक ही धकेल दिया.. पुलिस वाला संभल ना सका और वो फर्श पर गिर गया.. साबुन को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें.. पुलिस वाला उठने की कोशिश कर रहा था लेकिन ये क्या... साबुन की नज़र टेबल पर रखे साबुन की टिकिया के बगल मे नीरज के रीवालवर पर गयी.. बच्चा इतना डरा हुआ था कि उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो क्या कर रहा है. साबुन के एक हाथ मे गन तो दूसरे हाथ मे साबुन की टिकिया..
" ये... पागल है क्या.. गोली चल जायेगी.. "
पुलिस वाला अपनी जगह खड़ा तो था लेकिन उसके पैर काँप रहे थे क्योंकि सात साल के साबुन ने एक साबुन के लिए पुलिस वाले की गन पुलिस वाले पर ही तान दिया था. साबुन की आँखों मे क्रोध था. पुलिस वाला चिल्लाने लगा था.
" ये म्हात्रे.... म्हात्रे... किधर मर गया रे तू.. "
म्हात्रे हवलदार के साथ पुलिस स्टेशन के बाकी लोग भी चौंक गए थे. सबकी नज़र उस कमरे पर थी. म्हात्रे दरवाज़े की तरफ लपका था. दरवाज़ा अंदर से बंद था. और अंदर... अंदर साबुन की ऊँगली अब ट्रीगर पर थी. इंस्पेक्टर नीरज पूरी तरह डरा हुआ था.
" ये... ये साबुन.. दिवाली की बन्दुक नहीं है.. बेटा फायर हो जायेगी.. लॉक नहीं है गन... दबाना मत... "
दरवाज़े पीटा जा रहा था..
" इतनी जल्दी जल्दी क्राइम की सीढ़ी नहीं चढ़ते बेटा... आज ही चोरी आज ही मर्डर... तुझे साबुन चाहिए ना... कितना चाहिए.... मै दिलाऊंगा.. "
इंस्पेक्टर उस बच्चे को लालच देने लगा था. अपनी ज़िन्दगी की डील कर रहा था.. क्योंकि बाज़ी अब बच्चे के हाथ मे थे. एक कदम आगे बढ़ने की कोशिश किया पुलिस वाला.
" रुक... वही रुक.. "
अब बच्चे ने ललकारा. पुलिस वाला स्तब्ध. बाहर तक आवाज़ गयी. म्हात्रे और दूसरे पुलिस वाले भी हैरान. म्हात्रे ने कान दरवाज़े पर लगा लिया था. अंदर के मामले को सुन ने की कोशिश कर रहा था.
" ओके... मै रुक गया... बस...खुश... देख वो गन.. रख दे .. तुझे जाने दूंगा.. रख दे टेबल पर.. "
" तू मेरा कपड़ा क्यों खोल रहा था.. "
बच्चे ने गुस्से मे सवाल किया... क्योंकि शायद वो जान ना चाह रहा था कि पुलिस वाले का इरादा क्या है.
" ऐसे ही... ऐसे ही.. तू तो सीरियस हो गया इतनी सी बात पे.. "
" बता... बता.... बहनचोद "
बच्चा भड़का. काँप गया पुलिस वाला. बाहर म्हात्रे पूरा मैटर सुनकर समझने की कोशिश कर रहा था.
" तू. तू बहोत सुन्दर है... म म मै देखना चाह रहा था कि तू बिना कपड़ो के भी इतना ही सुन्दर है क्या... "
बच्चे की आँख छलक गयी.. पुलिस वाले ने जैसे अपना इरादा ज़ाहिर किया, बच्चे ने ट्रीगर दबा दिया. .. "
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