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प्रकृति ने इस पृथ्वी को जीवन देने से पहले उसे चेतना दी थी — एक ऐसी चेतना जो प्रेम करना जानती थी, संतुलन समझती थी, और मौन में निर्णय लेती थी।
पर जैसे-जैसे मनुष्य ने प्रगति के नाम पर अपने भीतर की संवेदना को कुचलना शुरू किया,
पृथ्वी ने धीरे-धीरे अपनी चेतना को समेटना शुरू कर दिया।
“प्रलय की भविष्यवाणियाँ” केवल भविष्य के विनाश की कहानी नहीं है —
यह उन मौन प्रश्नों की यात्रा है जो आज भी हमारी आत्मा से पूछे जा रहे हैं:
क्या विज्ञान सच में उन्नति है,
या वह केवल प्रकृति के विरुद्ध एक धीमा युद्ध है?
क्या प्रेम अब भी शुद्ध है,
या वह समाज के बनाए हुए पिंजरे में दम तोड़ रहा है?
क्या मनुष्य अब भी मानव है,
या वह चेतना से दूर एक मशीन बन चुका है?
इस पुस्तक में लेखक ने कोई डर नहीं फैलाया,
बल्कि एक आईना थमाया है —
जिसमें पाठक स्वयं अपने भविष्य की छाया देख सकता है।
हर अध्याय केवल शब्द नहीं,
बल्कि एक ऊर्जा है —
जो चेतावनी नहीं देता,
जगा देता है।
“प्रलय की भविष्यवाणियाँ” उन लोगों के लिए है
जो शब्दों से नहीं, मौन से उत्तर खोजते हैं।
यह पुस्तक उस आने वाले युग की दस्तक है,
जहाँ न धर्म बचेगा, न भाषा —
केवल चेतना बचेगी।
और वह चेतना कहेगी —
“अब और नहीं।”
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