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क्या कभी किसी ने तुम्हारे मौन को सुना है? क्या कभी किसी ने तुम्हारे भीतर छिपे उस ‘मैं’ को पहचाना है, जो रोज़ टूटता है और फिर भी मुस्कुराकर जीता है?
“तुम्हारे भीतर जो मैं था” एक गहरा भावनात्मक और दार्शनिक उपन्यास है, जो प्रेम, पीड़ा, मृत्यु, मौन और आत्म-चेतना की परतों में उतरता है। यह कोई साधारण प्रेमकथा नहीं बल्कि आत्मा की यात्रा है — एक ऐसे पात्र “अमित राज” की जो अपनी पहचान, प्रेम और जीवन के अधूरे प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ते हुए स्वयं से ही टकराता है। यह उपन्यास पाठक को उसके अपने भीतर ले जाता है और आत्मनिरिक्षण के लिए बाध्य करता है। हर पंक्ति एक दर्पण की तरह है — जिसमें आप चाहें तो खुद को पहचान सकते हैं। यदि आपने कभी किसी को दिल से चाहा है, कभी चुपचाप रोए हैं, या खुद को खोकर भी प्रेम निभाया है — तो यह किताब आपके...
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