You can access the distribution details by navigating to My Print Books(POD) > Distribution
क्या इतिहास केवल तारीखों का ढेर है, या प्रतीकों की एक रहस्यमयी भाषा?
'अथ मार्जरिका उवाच' मात्र छंदों का संकलन नहीं, बल्कि साहित्य जगत में एक क्रांतिकारी नवाचार है। यह संभवतः हिंदी साहित्य के इतिहास में पहली बार हुआ है कि आदिकाल के आर्यावर्त से लेकर 2025 के 'अमृत काल' तक के संपूर्ण भारतीय कालक्रम को एक विस्तृत 'प्रतीकात्मक पुनर्पाठ' (Symbolic Reinterpretation) के माध्यम से डिकोड किया गया है।
समय की साझीदार और तटस्थ प्रेक्षक 'मार्जरिका' (एक काल-जयी बिल्ली) के मुख से निकली यह गाथा शुष्क ऐतिहासिक तथ्यों से परे जाकर राष्ट्र की आत्मा को टटोलती है। इस महाकाव्य की सबसे बड़ी शक्ति इसका 198 मानकीकृत प्रतीकों का 'प्रतीक-कोष' है, जो जटिल राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तनों को एक जीवंत साहित्यिक रूप प्रदान करता है।
इस पुस्तक के पन्नों में आप साक्षी बनेंगे:
'श्वेत कपोतों' (शांति और शुरुआती स्वतंत्रता) के युग से लेकर 'महाबाघों' (आधुनिक राष्ट्रीय पौरुष) के उदय तक के सफर का।
'रानी की तानाशाही', 'मौन कपोत' का शासन, और 'डिजिटल यज्ञ' व 'नभ-सारथी' (अंतरिक्ष संधान) जैसी तकनीकी छलाँगों का।
भारत के राज्यों का उनकी भौगोलिक सीमाओं से परे एक नया परिचय—जैसे 'दर्रों की भूमि' से लेकर 'धरती का स्वर्ग' तक।
यह महाकाव्य प्रतियोगी परीक्षाओं (IAS/PCS) के अभ्यर्थियों, राजनीति विज्ञान के शोधार्थियों, कवियों और हर उस जागरूक नागरिक के लिए एक अनिवार्य सेतु है, जो भारत के 'राष्ट्र-रथ' को बिना किसी वैचारिक चश्मे के वस्तुनिष्ठ रूप में समझना चाहता है।
भारतीय वायु सेना के पूर्व वारंट ऑफिसर और पिंगल शास्त्र के मर्मज्ञ आनन्द कुमार आशोधिया द्वारा रचित यह कृति इतिहास, कविता और शोध का एक अद्भुत संगम है। यह राष्ट्र की अखंड चेतना का वह 'एक्स-रे' है, जिसे आने वाली पीढ़ियाँ एक संदर्भ ग्रंथ के रूप में याद रखेंगी।
एक नई दृष्टि। एक नया बोध। एक अमर यात्रा।
अविकावनी पब्लिशर्स | इतिहास, जहाँ कविता बनकर बोलता है।
Currently there are no reviews available for this book.
Be the first one to write a review for the book अथ मार्जरिका उवाच.