Description
अधराजण — सत्ता, प्रेम और अमरता का त्रासद महाकाव्य
✦ लेखक: आनन्द कुमार आशोधिया
✦ प्रकाशक: Avikavani Publishers
✦ संस्करण: संशोधित व द्वितीय संस्करण (2025)
पुस्तक परिचय:
अधराजण एक सांस्कृतिक, साहित्यिक और शोधपरक महाकाव्य है, जो हरियाणवी लोककाव्य की रागनी परंपरा को आधुनिक साहित्यिक विमर्श से जोड़ता है। यह ग्रंथ न केवल एक प्रेमकथा है, बल्कि सत्ता, आत्मबलिदान, और सांस्कृतिक पुनर्पाठ का गहन विश्लेषण भी है। लेखक आनन्द कुमार आशोधिया ने इस रचना में हरियाणवी लोकगीतों की आत्मा को पिंगल शास्त्र, ऐतिहासिक अभिलेखों और समकालीन आलोचना के माध्यम से पुनः परिभाषित किया है।
कथानक की धुरी:
कहानी महाराजा जगत सिंह, रसकपूर अधराजण, और फतेहकँवर के त्रिकोणीय संबंधों के इर्द-गिर्द घूमती है। यह प्रेम केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सत्ता और संस्कृति के बीच का द्वंद्व भी है। अधराजण का चरित्र एक ऐसी स्त्री का प्रतीक है जो प्रेम में अमरता खोजती है, और सत्ता के षड्यंत्रों के बीच अपनी आत्मा को बचाए रखती है।
रचना की विशेषताएँ:
30 मूल रागनियाँ, प्रत्येक के साथ वृत्तांत और विश्लेषण
पिंगल शास्त्र आधारित छंद संरचना
ऐतिहासिक संदर्भ: दरबारी अभिलेख, महाराजा जगत सिंह का कालखंड
तुलनात्मक अध्ययन: अन्य लोक-संस्करणों की समीक्षा
गुरु-शिष्य परंपरा: पालेराम दहिया जी के प्रति समर्पण
साहित्यिक समीक्षा, प्रस्तावना, भूमिका और लेखक वक्तव्य सहित
शोध और नवलेखन के लिए उपयोगी:
यह पुस्तक उन शोधार्थियों, कवियों और लोक-संस्कृति प्रेमियों के लिए अत्यंत उपयोगी है जो हरियाणवी रागनी, छंदशास्त्र, और सांस्कृतिक पुनर्पाठ में रुचि रखते हैं। इसमें प्रयुक्त रचना ढाँचा, छंद विश्लेषण और गेयता सूची नवलेखन के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो सकते हैं।
कला और सौंदर्य:
पुस्तक का कवर एक पारंपरिक भारतीय स्त्री की चित्रण के माध्यम से अधराजण की आत्मा को दर्शाता है — वह स्त्री जो गीतों में अमरता खोजती है। यह दृश्यात्मक प्रस्तुति पुस्तक को एक सांस्कृतिक धरोहर का रूप देती है।
लेखक परिचय:
आनन्द कुमार आशोधिया एक समर्पित कवि, लेखक और सांस्कृतिक शोधकर्ता हैं, जिन्होंने हिंदी और हरियाणवी साहित्य को तकनीकी परिशुद्धता और भावनात्मक गहराई के साथ प्रस्तुत करने का कार्य किया है। अधराजण उनकी अब तक की सबसे महत्त्वपूर्ण रचना है, जो लोक और शास्त्र के बीच सेतु का कार्य करती है।
पाठक वर्ग:
साहित्य प्रेमी
शोधार्थी और विश्वविद्यालय स्तर के विद्यार्थी
लोककला एवं रागनी गायन में रुचि रखने वाले
हिंदी और हरियाणवी कविता के पारखी
संस्करण विशेष:
यह द्वितीय संस्करण (2025) पूर्व संस्करण (2022) की तुलना में अधिक परिष्कृत है, जिसमें नई रागनियाँ, समालोचनात्मक टिप्पणियाँ, और छंद संरचना का विस्तार सम्मिलित है।
“जो मिट्टी में गीत बोता है, वो पीढ़ियों तक संस्कृति का चांद उगाता है।”
अधराजण उसी चांदनी की एक सांस्कृतिक झलक है — एक ऐसी रचना जो लोकगीतों की आत्मा को साहित्यिक अमरता प्रदान करती है।
लेखक परिचय
Anand Kumar Ashodhiya (कवि, लेखक एवं सांस्कृतिक प्रतिनिधि)
अनंत रचनात्मकता, अनुशासन और हरियाणवी लोक–संस्कृति के अद्वितीय संगम का नाम है — Anand Kumar Ashodhiya।
Anand Kumar Ashodhiya, जो हरयाणवी साहित्यिक जगत में 'कवि आनन्द शाहपुर' के नाम से विख्यात हैं, अनंत रचनात्मकता, अनुशासन और हरियाणवी लोक–संस्कृति के अद्वितीय संगम का नाम है।
पूर्व वारंट अफसर के रूप में भारतीय वायुसेना में 32 वर्षों की सेवा के दौरान जिस अनुशासन और दृष्टिविवेक की नींव पड़ी—वह उनके साहित्यिक लेखन में भी स्पष्ट रूप से झलकता है। उन्होंने Annamalai University से अंग्रेज़ी साहित्य में M.A. पास किया, परन्तु उनकी आत्मा सदा हिंदी व हरियाणवी लोक–ध्वनि में रची–बसी रही। लोक रागनी की परंपरा को जीवंत रखने के लिए, उन्होंने अपनी कृतियों में अपने पैतृक गाँव की पहचान को 'आनन्द शाहपुर' उपनाम के रूप में अंकित किया है, जो स्वर्गीय गुरु पालेराम दहिया हलालपुरिया जी की परंपरा को आगे बढ़ाता है।
लोक–साहित्य का प्रहरी:
Anand ji न केवल रागनी के रचनाकार हैं, बल्कि उसकी परंपरा, छंदशास्त्र (पिंगल), और गेयता के संरक्षक भी हैं। उनकी रचनाओं में:
• हरियाणवी किस्सों की आत्मा होती है
• शब्द–विन्यास में आधुनिकता और परंपरा का संगम होता है
• और साथ ही, समीक्षा की सम्यक दृष्टि उनके नव–प्रयोग को विशिष्ट बनाती है
आनन्द कुमार आशोधिया का जन्म 01 अप्रैल को हरियाणा के जिला सोनीपत स्थित गांव शाहपुर तुर्क में हुआ। वे स्वर्गीय श्री रघबीर सिंह एवं श्रीमती रतनी देवी की संतान हैं। मूल रूप से हरियाणा निवासी होते हुए भी फिलहाल मुंबई में निवासरत हैं। इन्होंने अन्नामलाई विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की है।
इनका जीवन एक अनुशासित सैनिक और सृजनशील साहित्यकार के रूप में दो ध्रुवों का संगम रहा है। वर्ष 1984 में एक युवा के रूप में भारतीय वायु सेना में भर्ती हुए और 32 वर्षों तक देश एवं विदेश में कार्यरत रहकर वर्ष 2016 में स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वायुसेना में रहते हुए इन्होंने हिन्दी भाषा के प्रशासनिक प्रयोग में विशेष योगदान दिया, जिसके लिए राजभाषा प्रोत्साहन सम्मान से लगातार 8 वर्षों तक अलंकृत किए गए।
सेवानिवृत्ति के उपरांत इन्होंने साहित्य को अपना जीवन -धर्म बना लिया। विगत 7–8 वर्षों से साहित्य-लेखन में निरंतर सक्रिय रहते हुए अब तक 250 से अधिक रचनाओं का सृजन कर चुके हैं। इन्होंने दो हरियाणवी नाटकों में अभिनय भी किया है जिन्हें यूट्यूब पर सराहना प्राप्त हुई।
इनकी साहित्यिक अभिरुचि दोहा, छंद, गीत, कविता, गजल, लघुकथा, कहानी तथा विशेष रूप से हरियाणवी रागनी लेखन में है। हिन्दी और हरियाणवी दोनों भाषाओं में लेखन करते हैं। इनकी प्रिय रचना "कारगिल गौरव गाथा" है। इन्होंने कवि सम्मेलनों की गरिमा बढ़ाने में भी अपना सहयोग दिया है। निस्वार्थी राष्ट्रीय साहित्यिक मंचों से सक्रिय रूप से जुड़े रहते हैं, तथा अब तक 11 साझा संकलनों / पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।
प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ:
एकल पुस्तकें:
1. अधराजण — हरियाणवी किस्सा (रागनी साँग शैली में) (प्रथम संस्करण) 2022
2. थारा मुद्दा थारी बात — हरियाणवी लघु कविता सँग्रह।
3. किस्सा भगत पूरणमल — रागनी संग्रह (समीक्षा सहित)।
4. हीर राँझा – हरियाणवी लोक रागणी संग्रह (पिंगल समीक्षा सहित)।
5. अविकावनी — हरियाणवी रागणी संग्रह।
6. द्रौपदी : एक लोक चेतना – रागनी, समीक्षा और पुनर्पाठ।
7. प्रेम के सौ रंग — आधुनिक हिंदी लघुकविता” संग्रह)।
8. अधराजण — हरयाणवी लोक रागणी सँग्रह - साहित्यिक समीक्षा सहित (द्वितीय संस्करण) 2025
साँझा संकलन / सह-लेखन:
• हरियाणवी कविता : भारत के परमवीर योद्धा, हरियाणवी जिन्दाबाद
• हिंदी कविता व लघुकथा: चाँद ज़मीं पर, पौत्र प्रसंग, हर घर तिरंगा, भारत की विजय, मातृभूमि, दोस्ती, कविता कौमुदी, जय हरियाणवी, म्हारा हररयाणा, नव संवत्सर
• प्रकाशनाधीन: लघुकविता व्योम, माँ के नवरात्रे
प्राप्त सम्मान व पुरस्कार:
• हरियाणा संस्कृति गौरव रत्न अवॉर्ड— म्हारी संस्कृति म्हारा स्वाभिमान संगठन, उमरावत (भिवानी)
• कारगिल गौरव विजय सम्मान— दिव्यालय साहित्यिक पटल, पटना
• निस्वार्थी साझा संकलन शिल्पकार 2024, परमवीर सम्मान, तिरंगा स्मृति सम्मान, अति सक्रिय लेखक सम्मान सहित निस्वार्थी पटल, ढाणा (झज्जर) द्वारा कुल 9 विशेष सम्मान
• शहीद उधम सिंह स्मृति सम्मान, जनसंख्या स्मृति सम्मान, सद्भाव स्मृति सम्मान
• हरयाणवी साहित्य रत्न 2025— हरयाणवी साहित्य मंच, रोहतक
• नव संवत्सर सम्मान 2025— डी डी भारती नेटवर्क, दिव्य दर्शन जयपुर
आनन्द कुमार आशोधिया न केवल परंपरागत लोक-विरासत के संवाहक हैं, बल्कि उसे आधुनिक दृष्टिकोण से नई पीढ़ी तक पहुँचाने का कार्य कर रहे हैं। उनकी साहित्यिक यात्रा संस्कार, सेवा और सरस्वती के संगम की प्रतीक है।
दृष्टि और ध्येय
आनन्द कुमार आशोधिया का लेखन केवल काव्य नहीं, अपितु एक सांस्कृतिक संकल्प का जीवंत दस्तावेज़ है। उनका ध्येय है कि अपनी लेखनी के माध्यम से वे लोक-संस्कृति की विरासत को राष्ट्रीय और वैश्विक मंच तक पहुँचाएँ और आधुनिक हिंदी साहित्य को विचारों की स्पष्टता से समृद्ध करें।
ISBN: 9789354691164
Publisher: Avikavani Publishers
Number of Pages: 229
Dimensions: 5.5"x8.5"
Interior Pages: B&W
Binding:
Hard Cover (Case Binding)
Availability:
In Stock (Print on Demand)