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‘दरभंगराज – मिथिला का ताज’ एक ऐसी शोधपरक पुस्तक है जो मिथिला की सांस्कृतिक पहचान, दरभंगा राजवंश की ऐतिहासिक यात्रा, और उनके सामाजिक–शैक्षणिक योगदान को सरल, प्रमाणिक और रोचक शैली में प्रस्तुत करती है।
यह पुस्तक राजदरभंगा के उदय, उनकी प्रशासनिक संरचना, तथा औपनिवेशिक काल में उनके प्रभाव जैसे महत्वपूर्ण पक्षों को संतुलित दृष्टिकोण से समझाती है।
लेखक ने न तो राजवंश का केवल गुणगान किया है और न ही अनावश्यक आलोचना — बल्कि उन पहलुओं पर भी प्रकाश डाला है जो आमतौर पर इतिहास की मुख्य धारा में अनदेखे रह जाते हैं।
यह पुस्तक उन पाठकों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो—
मिथिला और बिहार के इतिहास में रुचि रखते हैं
दरभंगा राजवंश के सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक प्रभाव को समझना चाहते हैं
भारतीय प्राचीन राज्यों के विकास और योगदान का अध्ययन करते हैं
‘दरभंगराज – मिथिला का ताज’ पाठक को इतिहास, संस्कृति और समाज के गहरे संबंधों को नई दृष्टि से देखने के लिए प्रेरित करती है।
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