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सोचिये एक बड़ी सी चार दीवारी के दायरे में अपने जीवन के 22 बरस दे देना बच्चों को तराशने में ताकि आगे चलकर आने वाले वक्त में वो देश और समाज के लिए कुछ अच्छा कर सकें, ये किसी साधना से कम तो नहीं। आवासीय विद्यालय या बोर्डिंग स्कूल की अपनी एक अलग ही दुनिया होती है जो बाहरी दुनिया से देखने पर यूँ दिखती है जैसे जिंदगी वहाँ एक रूटीन को ही अमल में लाते हुए ढर्रे से चल रही हो, कि जैसे वहाँ नया कुछ भी नहीं, सुबह से शाम और शाम से फिर सुबह तक जैसे जिंदगी वहाँ सिर्फ एक टाइम टेबल को अमल में लाती हो, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। एक टाइम टेबल से परे वहाँ की दुनिया मिर्ची सी तीखी, अचार सी खट्टी और शहद सरीखे मीठी बहुत है। वहाँ की कहानियाँ वहाँ के बच्चों की जुबानी तो आपने अक्सर सुनी होगी लेकिन इस दफे इन किस्सों को पढ़िए वहाँ की शिक्षिका, अरूणा राठौर के लिखे शब्दों में।
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