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यह केवल एक प्रेम कथा नहीं है। यह उन आवाज़ों की कहानी है जिन्हें अक्सर दबा दिया जाता है। यह उन रिश्तों की व्यथा है जिन्हें समाज तिरछा मानकर नकार देता है। ‘तिरछे आईने’ एक ऐसे किशोर की यात्रा है जो अपने भीतर उठते सवालों से लड़ रहा है। जो खुद को समझना चाहता है, जो अपने जैसे किसी को ढूंढता है, और जो यह जानना चाहता है कि क्या उसका प्रेम भी उतना ही पवित्र है जितना किसी और का।यह उपन्यास उन भावनाओं की बात करता है जिन पर अक्सर पर्दा डाल दिया जाता है। घर की चुप्पी, समाज की नज़रें, रिश्तों की जटिलताएं, और एक ऐसा प्रेम जिसे ‘स्वीकार’ करने के लिए पहले ‘संघर्ष’ करना पड़ता है। कभी यह कथा एक सादा मन के प्रेम की तरह लगती है, कभी यह एक टूटी आत्मा की चीख़ बन जाती है। और अंत में यह आपको आपके ही भीतर झाँकने पर मजबूर कर देती है। यह उपन्यास किसी को अपराधी नहीं ठहराता। यह बस एक आईना रखता है तिरछा सही, पर झूठा नहीं।
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