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इस संकलन में कुछ चुनिंदा लघुकथाओं को पिरोकर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ। इन लघुकथाओं के विषय एवं आयाम अलग-अलग हैं । सामाजिक पृष्ठ भूमि कहीं प्रमुख है तो कहीं पारिवारिक। कुछ मानव पात्रों पर केंद्रित हैं तो कुछ मानवेतर पात्रों पर आधारित। जीवन जगत की समस्याओं को आधार बनाकर एक साहित्यिक परिदृश्य रचने का किंचित प्रयास किया है। इसमें मेरा उद्यम कितना फलीभूत हुआ है इसका जिम्मा आपको सौंपता हूँ।
लिखना एक अलग बात है और प्रकाशित होना अलग। आज नामी संस्थाएँ कुछ स्थापित लेखकों के गिर्द घूम रही हैं। वे नाम के पीछे भाग रही हैं काम के पीछे नहीं। पाण्डुलिपियों को पढ़ना भी उन्हें गवारा नहीं।
बहुत सारी नई प्रकाशन संस्थाएँ आज़ सक्रिय हैं। यहाँ प्रकाशन की व्यवस्था अलग अंदाज़ की है। इनकी शर्तों से लेखकों को विशेष लाभ नहीं है। नए लेखक इस ओर झुकने को बाध्य हो रहे हैं।
स्वप्रकाशन योजना आज़ खूब फल-फूल रही है। मूल उद्देश्य है रचनाओं को पाठकों तक पहुँचाना। अपने विचारों को उनके समक्ष रखना चाहे जिस प्रकार या जिस माध्यम से हो सके। ये रचनाएँ पाठकों को कितना उद्वेलित कर पाती हैं यह तो सुधि पाठकों की प्रतिक्रियाओं से ही पता चलेगा। हो सकता है कुछ रचनाएँ पाठकों की अपेक्षाओं पर खरी न उतरें। मैं पाठकों की आलोचनाओं का स्वागत करूँगा।
इस संकलन के संयोजन एवं प्रकाशन में मुझे जिन लोगों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोग मिला है‚ मैं उनके प्रति आभार प्रकट करता हूँ।
आपके सुझावों/प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा।
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