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इस संग्रह में मैंने विविध विषयों पर आधारित कुछ कहानियों को पिरोया है। लगातार तीन दशकों से कथा लेखन से जुड़ा हुआ हूँ परंतु फिर भी मैं स्वयं को श्रेष्ठ क्या, एक सफल कहानीकार भी नहीं मानता। कोशिश है कि आपके पसंद की कुछ रचनाएँ आपके समक्ष प्रस्तुत करूँ। इस प्रयास में मैं कितना सफल हुआ हूँ यह आपके आशीर्वाद से ही पता चलेगा।
जहाँ तक इस संग्रह की बात है तो इसकी पहली कहानी कुछ लंबी है। जिस दर पर बालिका भ्रूण की हत्या हो रही है, संभव है कि भविष्य में यह ग्रह स्त्री रहित हो जाए। इस कहानी में एक ऐसे ही ग्रह की कल्पना की गई है। दूसरी कहानी एक ज्वलंत मुद्दे सांप्रदायिकता पर आधारित है। समाज में उदार लोग भी हैं और कट्टरवादी भी। अपराध कोई एक करता है और भुगतना पड़ता है पूरे समुदाय को। तीसरी कहानी गरीबों के सपनों के साथ खिलवाड़ करने वाले अमीरों और शासन तंत्र के भ्रष्ट आचरण पर केंद्रित है।
जब से पश्चिमी सभ्यता का नकल किया जाने लगा है, परिवार बिखरते जा रहे हैं। भोग-उपभोग की अंधी दौड़ में लोग आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं। स्वार्थ पर टिके रिश्ते न तो स्थाई होते हैं,न सुखद। भौतिक सुख की अंधी दौड़ हमें पतन की ओर ले जाती है। एक कहानी इस विषय पर केंद्रित है।
एक कहानी में आतंकवाद के भयावहता को उकेरने का प्रयास किया गया है। आतंक से दूसरों को हानि पहुंचाने का प्रयास किया जाता है परंतु कभी-कभी यह स्वयं के लिए भी घातक हो जाता है। अपने प्रिय जनों को खोने का जो दर्द होता है उसी दर्द को दूसरों को झेलना पड़ता है। यह किसी समस्या का समाधान नहीं है बल्कि बहकावे में उठाया गया एक ग़लत कदम मात्र होता है।
एक कहानी में एक हादसे में बिखरते जा रहे युवक को चित्रित किया गया है। जब वह धैर्य से काम लेता है तो उसके सुखद दिन पुनः लौट आते हैं। जीवन में मुश्किलें तो आती ही रहती हैं पर हमें अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए।
ऐसे ही कई कहानी हैं जो कुछ-न-कुछ संदेश देते हैं।
आशा करता हूँ कि पाठकों को ये कहानियाँ पसंद आएँगी। मैं चाहता तो किसी बड़े साहित्यकार से भूमिका लिखवा सकता था परंतु मैंने ऐसा नहीं किया है। मैं चाहता हूँ कि पाठक ही इन कहानियों के बारे में अपनी राय से इनकी सार्थकता और प्रासंगिकता को स्पष्ट करें। यदि ये पाठकों की कसौटी पर खरे उतरे तो मैं अपने परिश्रम को सार्थक समझूँगा।
आपके विचारों एवं सुझावों का आलोचना के साथ स्वागत रहेगा।
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