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कूटस्थ उपदिष्ट दशमुखी गूढ़ महाविद्याओं के अर्जन से साधक, भावविहीन प्राणायामाभ्यास के कारण, रावण पद को प्राप्त हो जाता है | इस अवस्था में साधक को मेरुदण्डरुपी हिमालय मध्यस्थित सुषुम्ना नाड़ी के सूक्ष्माग्र सिरे (यही कैलाश है) में विचित्र अभिकम्पन की अनुभूति होती है | तदनन्तर साधक के कूटस्थ में स्थित अङ्गुष्ठ प्रमाण शिवपुरुष की माया से १०८ मुखी ताण्डव क्रिया का अभ्युदय होता है, जिसके भावपूर्वक दृढ़ प्राणायामाभ्यास से साधक शिव पद को सहज ही प्राप्त हो जाता है |
अध्याय अनुक्रमणिका
१ जटा डमरू तन्त्र
२ त्रिनेत्र तन्त्र
३ मेरुदण्ड तन्त्र
४ कूटस्थ तन्त्र
५ अलजिह्वा तन्त्र
६ कापालिक तन्त्र
७ भस्म तन्त्र
८ कण्ठ तन्त्र
९ संहार तन्त्र
१० क्रियानाड़ी तन्त्र
११ रेचक ध्वनि तन्त्र
१२ तद्भाव तन्त्र
१३ कूटस्थ गमन तन्त्र
१४ कपाल भेदन सहस्रार तन्त्र
१५ निःशब्द तन्त्र
१६ परावस्था तन्त्र
१७ स्थिर लक्ष्मी तन्त्र
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