You can access the distribution details by navigating to My Print Books(POD) > Distribution

Add a Review

Janatantra Ka Aaina

Chunav, Rajneeti aur Samaj par Vyangyaatmak Kavitayen
Devendra Pratap 'Nasamajh'
Type: Print Book
Genre: Poetry
Language: Hindi
Price: ₹357 + shipping
Price: ₹357 + shipping
Dispatched in 5-7 business days.
Shipping Time Extra

Description

“जनतंत्र का आईना: चुनाव, राजनीति और समाज पर व्यंग्यात्मक कविताएँ” एक ऐसा काव्य-संग्रह है, जो हमारे लोकतंत्र, राजनीति और समाज की उन परतों को उजागर करता है जिन्हें हम प्रतिदिन देखते तो हैं, पर अक्सर अनदेखा कर देते हैं।

लोकतंत्र में जनता को सर्वोपरि माना जाता है।
लेकिन वास्तविकता में क्या जनता सचमुच सर्वोपरि है?
चुनावी वादों, नारों, मुफ़्तख़ोरी और सत्ता की भूख के बीच आम आदमी कहाँ खड़ा है?
इन्हीं सवालों और उनके उत्तरों की खोज है यह काव्य-संग्रह — “जनतंत्र का आईना”।

कवि देवेंद्र प्रताप ‘नासमझ’ ने अपनी कविताओं के माध्यम से भारतीय राजनीति और समाज की तस्वीर को व्यंग्य और संवेदना के रंगों में उकेरा है।
यह पुस्तक सात अध्यायों में विभाजित है, और हर खंड लोकतंत्र की एक अलग परत को सामने लाता है:

चुनावी रंगमंच : चुनावी वादों, नारों, नोटा, मतदाता की व्यथा और मुफ़्त की राजनीति पर व्यंग्य।
सत्ता के खेल : राजनीतिक नैरेटिव, जुमले, धरना, गुटबंदी और शिक्षा जैसे मुद्दों पर व्यंग्य।

भ्रष्ट तंत्र : मीडिया, इलेक्टोरल बॉन्ड, पेपर लीक, सड़कें, गाँवों की उपेक्षा और भ्रष्ट नेताओं का सच।

न्याय के आईने में : न्यायपालिका से जुड़े प्रश्न, अनोखे फ़ैसले और अधूरे उत्तर।

मानवता की आवाज़ : सामाजिक सौहार्द, इंसानियत और राष्ट्रीय एकता की पुकार।

दुनिया का आईना : वैश्विक अन्याय, युद्ध, प्रदूषण, टैरिफ और नए उपनिवेशवाद जैसी चुनौतियाँ।

कल का सपना, भारत अपना : भविष्य का भारत, उसकी चुनौतियाँ और उम्मीदें।

इन कविताओं में केवल आलोचना नहीं है, बल्कि सवाल भी हैं, चेतावनी भी है, और कहीं न कहीं एक बेहतर कल की झलक भी। लेखक का उद्देश्य है पाठकों को हँसाना, चुभाना और साथ ही सोचने पर मजबूर करना।
अपनी पिछली कृति “कॉरपोरेट पर अनकही कविताएँ” में लेखक ने कॉरपोरेट जीवन की अनकही सच्चाइयों और तकलीफ़ों को स्वर दिया था।

इस नई पुस्तक में वे राजनीति और समाज की जटिलताओं को आईने की तरह हमारे सामने रखते हैं।

यह कृति हर उस पाठक के लिए है, जो लोकतंत्र को समझना चाहता है, उसकी कमियों पर सवाल उठाना चाहता है और एक बेहतर भविष्य का सपना देखता है।

“जनतंत्र का आईना” केवल कविताओं का संग्रह नहीं, बल्कि नागरिक चेतना का दस्तावेज़ है।

देवेंद्र प्रताप ‘नासमझ’
2 अक्टूबर 2025

About the Author

देवेंद्र प्रताप ‘नासमझ’ एक अनुभवी यांत्रिक अभियंता हैं, जो पिछले 29 वर्षों से ऑटोमोटिव उद्योग में कार्यरत हैं। उन्होंने प्रतिष्ठित संस्थानों में काम करते हुए तकनीकी दक्षता के साथ-साथ मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक यथार्थ को भी गहराई से समझा है।

मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बदायूं जनपद से संबंध रखने वाले ‘नासमझ’ वर्तमान में भिवाड़ी (राजस्थान) में निवास करते हैं।

कविता के क्षेत्र में वे अत्यंत सक्रिय हैं और अब तक 500 से अधिक कविताएँ रच चुके हैं। उनके विषय-वस्तु का दायरा अत्यंत व्यापक है—प्रकृति, राजनीति, सामाजिक जीवन, पारिवारिक संबंध, प्रेम, कॉर्पोरेट परिवेश, गुणवत्ता, पर्यावरण, व्यावसायिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा—सभी पर उन्होंने गहरी संवेदना और व्यंग्यात्मक दृष्टिकोण से लिखा है।

उनकी पहली पुस्तक “कॉरपोरेट पर अनकही कविताएँ” प्रकाशित हो चुकी है, जिसने पाठकों का ध्यान आकर्षित किया। वर्तमान संग्रह “जनतंत्र का आईना: चुनाव, राजनीति और समाज पर व्यंग्यात्मक कविताएँ” उनके रचनात्मक सफ़र का अगला महत्वपूर्ण पड़ाव है, जिसमें वे लोकतंत्र, राजनीति और सामाजिक व्यवस्था को व्यंग्य और साहित्यिक गहराई से प्रस्तुत करते हैं।

हालाँकि उनकी प्रमुख लेखन भाषा हिन्दी है, लेकिन वे अंग्रेज़ी में भी कुछ कविताएँ लिख चुके हैं।

‘नासमझ’ नाम आत्मविनम्रता दर्शाता है, किंतु उनकी कविताएँ पाठकों को चिंतन, आत्ममंथन और समाज की सच्चाइयों से रूबरू होने के लिए प्रेरित करती हैं। वे केवल एक अभियंता नहीं, बल्कि आज के दौर के सजग कवि और संवेदनशील रचनाकार हैं।

Book Details

ISBN: 9789334423846
Publisher: Devendra Pratap
Number of Pages: 193
Dimensions: 5.5"x8.5"
Interior Pages: B&W
Binding: Paperback (Perfect Binding)
Availability: In Stock (Print on Demand)

Ratings & Reviews

Janatantra Ka Aaina

Janatantra Ka Aaina

(Not Available)

Review This Book

Write your thoughts about this book.

Currently there are no reviews available for this book.

Be the first one to write a review for the book Janatantra Ka Aaina.

Other Books in Poetry

Shop with confidence

Safe and secured checkout, payments powered by Razorpay. Pay with Credit/Debit Cards, Net Banking, Wallets, UPI or via bank account transfer and Cheque/DD. Payment Option FAQs.