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प्रेम, सृष्टि केर अखण्ड्य शाश्वत सत्य, सृजनक आधार, विस्तार एवम् अवसान, एकर विभिन्न रूप-वितान- दैहिक प्रेम, भौतिक प्रेम, अवसर विशेषक प्रेम, क्षणिक आकर्षण, भावात्मक प्रेम आओर नैसर्गिक प्रेम - जीव मात्रक आत्मीय भाव जे प्रकृति मोहिनीक परा सौन्दर्यक महनीय प्रभाव बनल रहल अछि, जाहिमे अवगाहन भेलापर आएह टा याद रहैत अछि आन किछु नहि |
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