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परिचय: मसीही विश्वास का इतिहास – सिद्धांतों और विधर्मों की गाथा
कलीसियाई इतिहास केवल बीते हुए घटनाक्रमों का लेखा-जोखा नहीं है, बल्कि यह इस बात का जीवित साक्ष्य है कि कैसे परमेश्वर ने युग-युगों में अपनी प्रजा के माध्यम से कार्य किया। यह हमें विश्वास, धैर्य, संघर्ष और विजय की कहानी सुनाता है, साथ ही हमें उन झूठी शिक्षाओं, विभाजनों और विकृतियों के बारे में भी चेतावनी देता है जो समय-समय पर उत्पन्न होती रहीं।
यह पुस्तक “मसीही विश्वास का इतिहास – सिद्धांतों और विधर्मों की गाथा” पाठक को मसीहीयत की जड़ों तक ले जाती है। इसमें बड़ी सावधानी से दिखाया गया है कि कैसे प्रारंभिक कलीसिया बढ़ी, कैसे विश्वासियों ने सताव का सामना किया, किस प्रकार सुसमाचार विभिन्न राष्ट्रों में फैला, और कैसे धर्मशास्त्रीय बहसों ने उस विश्वास को आकार दिया जिसे हम आज मानते हैं। साथ ही यह भी प्रकट किया गया है कि झूठे सिद्धांतों, विधर्मों और संप्रदायिक विभाजनों ने किस प्रकार अनेक विश्वासियों को सच्चाई से भटकाया।
यह पुस्तक पारंपरिक ऐतिहासिक सर्वेक्षणों से भिन्न है, क्योंकि यह इतिहास को सत्य और असत्य दोनों की गाथा के रूप में प्रस्तुत करती है—जहाँ एक ओर मसीह के प्रति सच्चे गवाहों को उजागर किया गया है, वहीं दूसरी ओर उन खतरनाक शिक्षाओं को भी सामने रखा गया है जिन्होंने लोगों को भटकाया। प्रत्येक अध्याय घटनाओं को उनके सही क्रम में रखता है, ताकि पाठक समझ सकें कि किस प्रकार सुसमाचार की पवित्रता को बार-बार चुनौती दी गई, उसका बचाव किया गया और अंततः उसे सुरक्षित रखा गया।
इस पुस्तक का उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं है, बल्कि विश्वासियों को सुसज्जित करना है। जैसा कि शास्त्र कहता है: “मेरी प्रजा ज्ञान के अभाव से नाश हो रही है” (होशे 4:6)—यह पुस्तक उसी ज्ञान को प्रदान करने का प्रयास है, जिससे पास्टर, सुसमाचार प्रचारक, उपदेशक और विश्वासी सच्चाई और असत्य में भेद कर सकें और विश्वास में दृढ़ बने रहें।
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