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कवि राजीव डोगरा के अन्तर्मन में आर्द्रता है, भावनाओं का विशाल गहन पारावार है, पल्लवित संवेदनाएं हैं, सामाजिक विद्रूपताओं के प्रति धधकता अलाव है, अनाचार दुराचार व्यभिचार, कदाचार को समूल कारने हेत तीक्ष्ण शब्द तीर है और व्यथा कथा स्व से पर तक साधारणी करण की अव्यक्त पीड़ा है।
*डॉ० प्रेमलाल गौतम शिक्षार्थी
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राजीव डोगरा ने जिस परिपक्वता से कविताओं का चयन व संकलन किया गया है, वह सराहनीय है। संग्रह की भाषा सरल सुगम और सुरुचिपूर्ण है, निश्चित ही यह पुस्तक पाठकों को पसंद आएगी और आने वाले वर्षो में उनके शब्दों के तरकश से अभोघ कृतियां बाहर आयेगीं।
* प्रो. रणजोध सिंह
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संग्रह में बहुत सी रचनाएं उम्दा हुई हैं, जिनका कोई जवाब नहीं है । फिर भी, राजीव जी को साहित्यिक जगत में अगर एक विशेष स्थान हासिल करना है तो उन्हें अपनी ये साधना मुसलसल जारी रखनी होगी क्योंकि साहित्यिक जगत को राजीव जी से बहुत अपेक्षाएं हैं l
* डॉ. नीरज पखरोलवी
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डॉ. राजीव डोगरा एक नई उडान का भी आगाज करते हैं। कविताएं आम मानस के हृदय पटल को छूती है। कहीं भी कृत्रिमता नहीं दिखती। कविताएं सरल, सहज, सपाट और सरल भाषा-शैली में लिखी गई हैं। कुछ कविताएं दर्पण की तरह समान का स्पष्ट है। कवि आत्मपीड़ा में रहकर समाज को नई राह दिखाता है।
*अदिति गुलेरी
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कवि मन बचपन में लौटना चाहता है। लेकिन धार्मिक व अस्तित्व वादी कविताएँ लिख कर परिपक्व होने का परिचय देता है। रचनाएँ समय के ताप से संतप्त मनुष्य को मानसिक शांति प्रदान करने वाली हैं और आदर्श व संयमित जीवन जीते हुए, परमशक्ति में विश्वास को मजबूत करतीं हैं।
* सुमन बाला
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