You can access the distribution details by navigating to My Print Books(POD) > Distribution
पुस्तक विवरण: "बोल म्हारी माटी"
लेखक: डॉ. सत्यवान सौरभ
भाषा: हरियाणवी (देवनागरी लिपि)
विधा: काव्य संग्रह | लोक साहित्य | समकालीन सामाजिक कविता
प्रकाशन वर्ष: 2025
पृष्ठ संख्या: ~120
मूल्य: ₹260/-
ISBN: 978-7-1862-8282-6
"बोल म्हारी माटी" केवल कविता-संग्रह नहीं, यह हरियाणा की मिट्टी की आत्मा की गूंज है। यह संग्रह गांव के चौपाल, खेत-खलिहान, लोक-त्योहार, तीज-तलवार, किसान की काठी और नारी की पीड़ा को एक साथ पिरोता है। लेखक डॉ. सत्यवान सौरभ ने लख्मीचंदीय छंद परंपरा को आधुनिक सामाजिक विषयों से जोड़ते हुए 100 से अधिक 16-पंक्तियों की कविताएं रची हैं, जो मिट्टी की महक और मन की सच्चाई को शब्द देती हैं।
हर कविता जीवन के किसी कोने को छूती है – कहीं दादी की लोरी, कहीं फौजी का गर्व, कहीं बेरोजगारी की टीस, तो कहीं नारी की बेआवाज़ चीख़।
उदाहरणस्वरूप:
“हल तै सीधी रेख खिंचै, पसीना बहे खेतां में,
दाम मिले बट्टे में, रोटी सुखे पेटां में।”
“बाबा चढ़े इनोवा में, भक्त चल्या पैदल तीरथ,”
“डिग्री लटकै दीवारां पर, नौकरी खाक मिलै,
बापू बोले – खेत में चल, छोरा बोले – reel चलै।”
यह संग्रह परंपरा और प्रगतिशीलता के बीच पुल बनाता है। इसमें ताऊ की हुंकार भी है, ताई की चुप्पी भी। हरियाणा की मिट्टी का गौरव, और समाज के भीतर गहरे धंसे मुद्दों का आइना भी।
यह संग्रह किसके लिए है?
उनके लिए जो अपनी लोकबोली को मंचीय और साहित्यिक पहचान देना चाहते हैं
युवाओं के लिए जो अपनी जड़ों से जुड़ना चाहते हैं
शिक्षकों, शोधार्थियों और लोक साहित्य प्रेमियों के लिए
मंचीय कविता पाठ करने वालों और सामाजिक चिंतकों के लिए
"बोल म्हारी माटी" – पढ़िए, गुनिए, और माटी की उस आवाज़ को सुनिए जो कहती है:
“मैं चुप सै, पर मैं बोली जाऊं सूं – मेरे अंदर सारा हरियाणा समाया सै।”
Currently there are no reviews available for this book.
Be the first one to write a review for the book Bol Mahari Maati.