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Chuppiyon Ki Mahak

Baal Kavya Sangrah
Dr Satywan Saurabh
Type: Print Book
Genre: Poetry
Language: Hindi
Price: ₹260 + shipping
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Description

“कभी-कभी सबसे गहरी बातें वे होती हैं, जो हम कभी कह नहीं पाते।”
यही विचार रचता है “चुप्पियों की महक” को — एक ऐसा काव्य-संग्रह जो शब्दों से ज़्यादा मौन की अनुभूति पर केंद्रित है।

इस संग्रह में दर्ज हैं वे कविताएँ जो

किसी माँ की चुप्पी में छिपी चिंता को आवाज़ देती हैं,

किसी प्रेम में छूटे वाक्य को मुकम्मल करती हैं,

और उस समाज का दस्तावेज़ बनती हैं,
जहाँ बोलने की जगह सहन करने को आदर्श माना जाता है।

डॉ. सत्यवान सौरभ, एक संवेदनशील कवि, शिक्षक, और सामाजिक विचारक के रूप में विख्यात हैं। उनकी कविताएँ शब्दों से आगे जाकर भावनाओं की ध्वनि बनती हैं — वे ध्वनियाँ जो पाठक के भीतर के मौन को छू लेती हैं।

"चुप्पियों की महक" उन सबके लिए है —
जो कभी किसी को सुनाना चाहते थे, पर मौन रह गए।
जो किसी की आंखों में झाँककर पूरी कविता पढ़ लेते हैं।
जो रिश्तों में महक तलाशते हैं — लफ्ज़ों से परे।

About the Author

डॉ. सत्यवान सौरभ
(कवि, लेखक, स्तंभकार और संवेदना के शिल्पी)

डॉ. सत्यवान सौरभ हिंदी साहित्य की समकालीन भूमि पर एक ऐसा नाम हैं, जो शब्दों में मौन को रचने की कला जानते हैं। हर कविता में एक अनुभव है, हर रचना में एक आंतरिक संघर्ष, और हर पंक्ति में समाज की अनकही पीड़ा की झलक।

हरियाणा के हिसार जनपद से आने वाले डॉ. सौरभ पेशे से शिक्षाविद्, पर आत्मा से कवि हैं। उन्होंने अपनी लेखनी को सामाजिक यथार्थ, स्त्री-चेतना, ग्रामीण जीवन और मानवीय संवेदनाओं का माध्यम बनाया है। उनकी कविताएँ नारे नहीं बनतीं — वे फूल की तरह चुपचाप खिलती हैं, और पाठक के भीतर अपनी महक छोड़ जाती हैं।

अब तक उनके कई काव्य-संग्रह, दोहा-संग्रह, सामाजिक विमर्श आधारित लेख, और बाल साहित्य प्रकाशित हो चुके हैं। उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकें —
"यादें",
"तितली है ख़ामोश",
"दर्पण में दरार",
"चलो कहानी सुनें",
इत्यादि — पाठकों के बीच सराही गई हैं।

"चुप्पियों की महक" उनके साहित्यिक जीवन की एक ऐसी पड़ाव है, जहाँ उन्होंने मौन को कविता और संवेदना को स्वर देने का प्रयास किया है।

उनकी रचनाएँ विभिन्न पत्र–पत्रिकाओं, साहित्यिक मंचों और डिजिटल मंचों पर प्रकाशित होती रहती हैं। वे कविता को केवल अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि विचार और प्रतिरोध का माध्यम मानते हैं।

“जो कहा नहीं गया — वही सबसे ज़्यादा सच्चा था।”
यही सोच उनकी रचनाओं में परिलक्षित होती है।

Book Details

ISBN: 9789506354855
Publisher: Rk Features Pragyanshala
Number of Pages: 108
Dimensions: 5.5"x8.5"
Interior Pages: B&W
Binding: Paperback (Perfect Binding)
Availability: In Stock (Print on Demand)

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