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"दर्पण में दरार" — एक ऐसा कुंडलिया संग्रह है जो केवल कविता नहीं, समाज के सामने एक आईना है। इस पुस्तक में कुल आठ खंडों में 240 कुंडलियाँ संकलित हैं, जिनमें से प्रत्येक छंद समाज के किसी न किसी अनछुए, अनकहे और उपेक्षित पक्ष को उजागर करता है।
यह काव्य-संग्रह स्त्री की चुप्पियों से लेकर पुरुष की पीड़ा तक,
रिश्तों की रेत से लेकर टूटती नैतिक नींव तक,
प्रेम की पराजयों से आत्मा की पुकार तक,
बचपन की चिट्ठियों से लेकर मंच, मंडियों और मीडिया की चालबाजियों तक —
हर वह कोना टटोलता है जिसे आज की चकाचौंध भुला रही है।
डॉ. सत्यवान सौरभ की लेखनी व्यंग्यात्मक भी है, भावप्रवण भी,
तथ्यों से टकराती भी है और कविता की कोमलता भी संजोए हुए है।
यह पुस्तक न केवल साहित्यप्रेमियों के लिए एक संग्रहणीय कृति है,
बल्कि आलोचकों, शिक्षकों और विद्यार्थियों के लिए भी
एक दृष्टिकोण देने वाली विचारोत्तेजक रचना है।
यदि आप कविता को केवल मनोरंजन नहीं,
बल्कि विचार, प्रतिरोध और बदलाव का माध्यम मानते हैं —
तो "दर्पण में दरार" आपके लिए एक आवश्यक पठनीय कृति है।
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