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सामान्यत: सभी को अपने बचपन के दिन और उस स्थान से बहूत लगाव रहता है जहां उनका बचपन बीता है चाहे कष्टों मे या कमी मे लेकिन मां, बाप, भाई, बहन और दोस्तों के बीच गुज़रा वह वक्त़ कुछ अलग ही महत्व रखता है।
मैं जब मालगुडी डेज़ देखता था तो लगता था जैसे मेरा ही बचपन है और लगभग सभी सामान्य लोगों का वह समय, घूम फिरकर एक जैसा ही होता है। मालगुड़ी डेज़ से ही मुझे प्रेरणा मिली की मैं भी अपने बचपन की कुछ यादें आपके सांथ विशेषकर सीहोर वासियों के सांथ साझा करुं। मुझे आभास है कि इतना उच्च स्तर का और वह भी उपन्यास के रूप मे लेखन तो मेरे द्वारा संभव नही है लेकिन भावनाएं पहूंचाने का एक छोटा सा प्रयास है जिसमे मैने प्रायमरी स्कूलिंग के पूर्व एवं कक्षा आठवीं तक कुछ स्मृतियों को शब्दों मे संजोने का प्रयत्न किया है आशा है आप को भी यह पढ़कर अपने बचपन की यात्रा साझा करने की इच्छा जाग्रत होगी। बचपन का समय लगभग सभी की स्मृति मे बना ही रहता है और कोई घटना, वस्तु, सुगंध, संगीत और दृश्य देखकर उस काल मे हम कुछ क्षण के लिए पहूंच ही जाते हैं।
Re: सीहोर के दिन (eBook)
Ignoring some grammatical mistakes, the book is worth reading as it really took us towards childhood. We really miss so many things of that time. Butterflies, Glow-worms etc. are well described. Really the time we spent is precious and must be safe in our memories.