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"दिल की बात” किताब मे ज़्यादातर ग़ज़लें ही शुमार हैं। इन सभी ग़ज़लों में ज़्यादातर ग़ज़लें ज़िंदगी की तमाम उलझनों से निकली हैं। अधिकतर ग़ज़लें अमीरी और गरीबी से उठकर एक आदमी को खुदा की परछाईं मानती हैं। कहीं कहीं शायद भाव निकलता कि जिंदगी एक सफर है और सफर मे मंज़िलों की तलाश बेमानी है।
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