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₹ 192
''उस का कहना था कि तुम्हारी पति बीमार नहीं है. केवल शारीरिक व मानसिक रूप से थोड़े कमजोर है. उन्हें यह भ्रम है कि वह अपनी पत्नी को संतुष्ठ नहीं कर पाएंगे. इस का कारण उन की कुछ गलतफहमियां है. यदि उन की गलतफहमियों को दूर कर दिया जाए तो उन की शारीरिक व मानसिक ताकत को बढ़ाया जा सकता हैं.''
'' हूं.'' रमन ने हुंकार भरी. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि जो बातें उसे पता नहीं होना चाहिए थी. वह उसे पता थी. वह केवल इस भ्रम में था कि सावित्री उस के बारे में कुछ नहीं जानती है.
''तब मैं ने अपनी सहेली से पूछा था कि इस के लिए मैं क्या कर सकती हूं? तब सीमा ने मुझ उपाय बताया था— तुम एक बार अपने पति की इच्छा का सम्मान करते हुए वैसा सब कुछ करो, जैसा तेरे पति चाहते हैं.
'' इसलिए आप को पता होगा. एक बार मैं ने आप से वह सब पूछा था. जो आप को अच्छा लगता है या आप जैसा चाहते हैं. तब आप मेरे पास सोते समय वह बातें संवेगात्मक रौ में कह गए जो आप सामान्य रूप से नहीं कह पाते.''
'' हूं.''
'' जैसे ही मैं ने आप का चेहरा अपनी ओर किया. मैं चौंक गई. वे आप नहीं थे. यह देख कर मैं डर गई. मैं ने उसे दूर हटाने की कोशिश की. मगर, वह मुझ से जम कर चिपट गया था. वह केवल आईलवयू आईलवयू कहे जा रहा था. उस की सांसे बहुत गरम थी.
'' मैं ने बहुत कोशिश की. उस से छूटने की. मगर, उस की पकड़ से छूट नहीं सकी. उसे वास्ता दिया कि मैं एक ब्याहता स्त्री हूं. मैं अपने पति के लिए बैठी थी. मगर, वह नहीं माना. मैं बेबस सी उस की बांहों में छटपटाती रही.
'' उस ने अपने मन की मरजी पूरी कर ली. तब उस ने मुझे छोड़ा. मगर, तब वह मुझे छोड़ कर रोने लगा. उसे इस बात का दुख था कि उस ने अपने मनोवेग में वह सब कुछ कर लिया जो उसे नहीं करना चाहिए था.
'' वह मेरे पैर में लिपट गया. मुझे माफ कर दो भाभी. वह कहे जा रहा था. मगर, मेरे मुंह से निकला— तुम्हें माफ करने से मेरी इज्जत वापस नहीं आ जाएगी. मैं अपने पति के लिए तैयार बैठी थी उन्हें सब कुछ देना चाहती थी. तुम ने मुझे लूट लिया. अब मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नही रही.
''यह सुन कर वह रोने लगा. बोला— भाभीजी! मैं नालयक हूं. मुझे जीने का अधिकार नहीं है. मैं ने दुष्कर्म किया है. मुझे सजा मिलना चाहिए. तुम ऐसा करों कि पुलिस को बुला लो. मुझे उस के सुपुर्द कर दो. कह कर वह फुटफुट कर रोने लगा.
“ मगर, तब क्या हो सकता था? मैं लुटीपीटी बैठी थी. तभी तुम्हारा फोन आ गया. मैं ने उठ कर फोन उठाया.
'' मगर, तुम ने कुछ सुने बिना सीधा कह दिया— सवि! मुझे एक जरूरी काम से बाहर जाना है. मैं आज रात को देर से आऊंगा. रहा, आज का कार्यक्रम उसे हम कल कर लेगे. कह कर आप ने फोन काट दिया था.
'' मैं तो वैसे ही चेतनशून्य थी. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था? क्या करूं? तब वह मेरे पास आया. मेरे पैरों में गिर गया. मुझ से कहने लगा कि मुझे माफ कर दो. मैं नालयक हूं. या मुझे सजा दो. मारो. चिल्लाओ. ताकि लोग आ जाए.
'
संयम की जीत
लेखक का विश्वास है कि यह पुस्तक आपको अंत तक बांधे रखेगी आपका मनोरंजन करेगी।