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बहुत दिनों से इच्छा थी कि सीता जी पर कुछ लिखूं।जब भी रामायण पढ़ती जनक नन्दनी का चरित्र मेरे समक्ष एक प्रश्न बन कर खड़ा हो जाता कि उनके साथ उस युग में ऐसा क्यों हुआ।
अग्नि परीक्षा देने के बाद भी पुरुष समाज ने स्त्री होने का दंड दिया सीता माता को।
उन परिस्थितियों में उनकी मनोस्थिति क्या और कैसी रही होगी इसी को चित्रित करने का एक छोटा सा प्रयास किया है मैंने।
समर्पण
समस्त नारी जाति को समर्पित
श्रीमती ओमलता जी ने सीता जी की मनस्थिति का जो मार्मिक विवरण किया है, वह किसी भी स्त्री को क्या, एक साधारण मनुष्य को भी उद्वेलित कर सकता है। अपने सधे और संतुलित शब्दों के उत्तम चयन के द्वारा वह सीता जी की भावना को उकेरने में पूर्णतः सफल हुई हैं। भावनाओं का प्रवाह और मन मस्तिष्क को झकझोर देने वाली यह कविता आज भी प्रासंगिक लगती है। ओमलता जी को कोटि कोटि नमन जिनकी लेखनी इतनी प्रखर और विचार इतने प्रबुद्ध हैं। सादर अभिवादन।
ओमलता जी ने इस कविता में सीता जी की मन:स्थिति का बहुत मर्मस्पर्शी चित्रण किया है. आज के समय में भी यह घटना उतनी ही प्रासंगिक है.
कविता मन में अनेक प्रश्न खड़े करती है. बहुत ही अच्छा लेखन
Very beautifully depicted the mental state and emotions of Mother Sita !! Read many times and each time I am mesmerised with the selection of appropriate words and binding of thoughts !! Must read !!
Amazing
Very good written, narrated the story amazingly. Pls keep up the writing.