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“माटि सँ महकैत: मिथिला – बिहारक कविता”
यह कविता-संग्रह मिथिला और बिहार की सांस्कृतिक विरासत, लोकजीवन और भावनात्मक बुनावट को शब्दों में पिरोता है।
इसमें गाँव की यादें, शहर का बदलता रूप, भाषा की महत्ता, धर्म की सीख, जीवन की चुनौतियाँ और नदी–प्रकृति की छवियाँ कविताओं के रूप में उभरती हैं।
इस पुस्तक की हर कविता पाठक को उसकी जड़ों, संस्कृति और मानवीय संवेदनाओं से जोड़ती है।
मिट्टी की महक, लोककला की छटा और जीवन की सादगी इसमें स्पष्ट रूप से अनुभव की जा सकती है।
यह संग्रह न केवल साहित्य प्रेमियों के लिए, बल्कि हर उस पाठक के लिए विशेष है जो अपनी संस्कृति और भावनाओं से गहरा रिश्ता महसूस करना चाहता है।
मिथिला की माटी की महक
इस कविता संग्रह में मिथिला और बिहार की माटी की सौंधी महक गुलज़ार करती है और आपको अपने गाँव अपनी माटी अपनी जड़ों की रूमानियत का एहसास कराती है