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कभी कभी हम कुछ करते नहीं हैं , बस कुछ हो जाता है , यह पुस्तक कुछ ऐसी ही है । आज सुबह ही लिखते लिखते इतनी कवितायें हो गईं की मन में आया एक छोटी पुस्तक के रूप में रचनाओं को सम्हाल दूँ । बस पिछले कुछ दिनों के काम यहाँ इकट्ठा कर के रख दिये । अपनी रचनाओं के विषय में न पहले कभी निर्णय किया है और न आज करने जा रहा हूँ । मैंने क्या लिखा है , कैसा लिखा है और यह किस सीमा तक पाठक के हृदय तक पहुंचेगा इसका निर्णय समीक्षक और पाठक ही करेंगे । श्रोताओं ने मेरे इस प्रयास और ऐसे लेखन को बहुत प्यार दिया है ।
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