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जीवन कि यात्रा में चलते चलते बहुत कुछ मन में अंकित होता जाता है. रोजमर्रा कि मशक्कत में ये सारे भाव गहरी परतों में जज्ब हो कर बर्फ कि तरह जम जाते हैं. कभी फुर्सत के कुछ पल मिलते हैं तो यादों कि गर्मी से ये धीरे धीरे पिघल कर प्रवाहित होने का प्रयाश करते हैं और शब्दों में बंध जाते हैं...
इसी पिघलती बर्फ का प्रवाह है इस पुस्तक में, कुछ शेर, कुछ गीत और चार पंक्तियों में कही बातें, इस आशा से कि दबी हुई ये बर्फ आप को पिघलते पिघलते छू जाए...
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