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नदियाँ माँ होती है, हमारे सभ्यताओं का ख्याल रखती है, हमारे इतिहास को एकत्र कर के रखती है। हमारी प्यास ख़त्म करती है, हमारे अनाज को सिंचती है और न जाने कई अनगिनत चीजें। पर हम तो इंसान है, हमें ज़रूरत पड़ने पर ही माँ की याद आती है, हम उसकी उपेक्षा करते है, हम नदियों में सारा गंध डालते है और बोलते है " गंगा माँ की जय'।
मेरे शहर में भी एक गंगा जिसे हम स्वर्णरेखा बोलते है। बचपन से न जाने कितने कहानियां सुना है स्वर्णरेखा कि धाराओ को लेकर, स्वर्णरेखा कि रेत को लेकर। बस उन्हीं सारी कुछ सच, कुछ सोच और कुछ घटनाओं की कहानियां को लेकर मैं आया हूँ "द गोल्डेन रिवर ऑफ इंडिया"
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