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पुस्तक 'अपने अपने कुरूक्षेत्र' में वरिष्ठ लेखिका कृष्णा अग्निहोत्री की ग्यारह कहानियां संग्रहीत हैं। ये कहानियां अलग-अलग तेवर व मिजाज की हैं। इन कहानियों के विषय व पात्र विभिन्न हैं और उनके जीवन से निकली भावनाएं नये व पुराने के अच्छे-बुरे की तुलना कर कुछ सोचने पर बाध्य करती हैं। आजकल व्यक्ति से व्यक्ति का सरोकार टूटता ही जा रहा है जबकि वास्तविकता यह है कि व्यक्तिगत सरोकार के बिना रिश्ते नहीं बनते और रिश्तों से शून्य समाज केवल भागमभाग की दौड़-सी हो जाता है। एक ऐसा शून्य जो अजनबी बनाकर खोखली मानसिकता में फेंकता है तब सब कुछ होता है पर अपनत्व नहीं मिलता। इसलिये नाटकीय सभ्यता, परायी संस्कृति में भी अधकचरे स्तरों पर जीना कुछ भी मायने नहीं रखता। ये कहानियां इसका बोध भलीभांति कराती हैं।
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