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प्रस्तावना
देवी अहिल्या बाई भारतीय महिला के सामर्थ्य की कीर्ति स्तम्भ है, जिनकी कार्यशैली में नारी उन्नयन का, नारी की सृजनात्मकता का,नारी की रचनात्मकता के साथ सभी पहलुओं का बोध होता हैI कई महान लेखको ने देवी अहिल्याबाई के जीवन चरित्र व शैली के अनेकों प्रसंगों को अपनी अपनी पुस्तकों और लेखों में वर्णित किया है I इस पुस्तक में उनके अलग अलग पहलुओं का संयोजन करने का प्रयोग भी किया गया हैI चूँकि अहिल्याबाई महिलाओं के लिए एक प्रेरणा श्रोत है, आगे भी सदैव महिलाओं को उनकी प्रेरणा मिलती रहे, पुस्तक में मेरे द्वारा ऐसा प्रयास किया गया हैI
इस पुस्तक का उद्देश्य सम्पूर्ण समाज में उनके जीवन और योगदान के व्यापक दृष्टिकोण को प्रस्तुत करना है जिससे कि उनके व्यक्तित्व, उनके कार्यों, और उनके समय की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों को गहराई से समझा जा सके। देवी अहिल्याबाई एक प्रज्ञावान विदुषी रहीं, उनके जीवन की कितनी ऐसी बातें हैं जो आज भी समाज जीवन के लिए उपयोगी है। उनका पूरा जीवनवृत महासागर की भाँति है। असंख्य प्रेरणादायक प्रसंग और घटनाएं हैं। उनका चिंतन और कार्य असीमित थे।
यह देश वीरांगनाओं ,क्रांतिकारीयों, ऋषियों ,मनीषियों ,संतों तथा गुरुओं का देश माना जाता है। यही एकमात्र देश है जो विश्व गुरु कहलाया । जब मानव ने पृथ्वी पर पहली बार आंखें खोली तो सर्वप्रथम उसे भारत भूमि के दर्शन हुए। विश्व की पहली सभ्यता तथा संस्कृति यही जन्मी, पनपी तथा पल्लवित हुई। विश्व की सभी प्राचीन सभ्यताएं रोम यूनान मिश्र आदि नष्ट हो गई। परंतु अपने श्रेष्ठ तत्व के कारण यह आज भी विश्व प्रेरक है।
महेश्वर में नर्मदा के तट पर नैतिक जीवन तथा सुशासन व्यवस्था का अद्भुत प्रेरक उदाहरण है। महेश्वर का वैभव व गौरव है। न्याय की देवी अहिल्याबाई होलकर का जीवन कुछ ऐसा ही है। वह अध्यात्म धर्म ,दर्शन, संस्कृति, इतिहास, न्याय, शिक्षा, उद्योग, सुरक्षा, कुशल शासक, दूरदर्शी नेत्री, बहादुर योद्धा और बुद्धिमान विद्वान थीI
रामायण और महाभारत को श्रवण करने से उन्हें काफी ऊर्जा प्राप्त होती थीI वह पुण्य कार्यों के प्रति सर्वदा श्रद्धावान रहती थीं, और पूर्ण निष्ठा के साथ ऐसे पुण्य कार्यों को श्रेष्ठ विद्वानों की मदद से पूरा करती थीं। संस्कृत के साथ-साथ पूरे देश में वेद के ज्ञान को बढ़ावा मिले इसके लिए उन्होंने काशी से संस्कृत और पुणे से मराठी के विद्वान बुलाए। संस्कृत विषयों के कारण लोगों में रुचि बढ़ी और इसी कारण वेद से हमें ज्ञान प्राप्त हुआ। उनके द्वारा कराए गए इन निर्माण कार्यों में प्रवचल कक्ष, आरोग्य कक्ष और मल्ल शालाएं भी थी। जिससे कि समाज शिक्षित प्रशिक्षित ,स्वस्थ रहे जिससे भारत राष्ट्र की संस्कृति सुरक्षित हो।
वे अपने राज्य में महिलाओं को आत्मनिर्भर और स्वाभिमान संपन्न जीवन का वातावरण देना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने महिला अधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन के लिए कानून बनाकर एक विशेष परिवर्तन किया। जिसकी सुरभि आज भी सम्पूर्ण भारत में फैली हुई है।
देवी अहिल्याबाई होलकर का नाम भारतीय इतिहास में नारी शक्ति, धर्मपरायणता, और न्यायप्रियता के प्रतीक के रूप में अंकित है। वह मराठा साम्राज्य की एक महान शासिका थीं, जिन्होंने अपने अद्वितीय शासनकाल के दौरान प्रशासनिक कुशलता और जनता के कल्याण के प्रति अपने अटूट समर्पण का परिचय दिया हैI
भारतीय इतिहास में अहिल्याबाई होल्कर को एक महत्त्वपूर्ण और प्रेरणादायक व्यक्तित्व माना गया है। साथ ही उनकी बुद्धिमत्ता, उदारता, और समाज के प्रति उनकी संवेदनशीलता की प्रसंशा तथा अहिल्याबाई की सशक्त नेतृत्व क्षमता और सामाजिक सुधारों के प्रति उनके समर्पण की गहरी सीख मिलती है।
भारतीय समाज में अहिल्याबाई एक प्रभावशाली चरित्र और आदर्श शासिका रहींI जिन्होंने अपने शासनकाल में न्याय, धार्मिक सहिष्णुता, और प्रशासनिक दक्षता का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है। इतना ही नहीं ये बड़ी बात है कि उन्होंने केवल अपने राज्य ही नहीं बल्कि कई क्षेत्रों में प्रमुख मन्दिर जो मुगलों द्वारा ध्वस्त किये जा चुके थे, जिसमें श्री काशी विश्वनाथ मंदिर भी था, उन्होंने तत्कालीन काशी नरेश राजा श्री चैत सिंह के साथ आपसी सामंजस्य स्थापित कर “बाबा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर” का वर्ष 1780 में जीर्णोद्धार कराया था। इसके लगभग तीन शताब्दी के बाद वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी ने 8 मार्च 2019 को विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर का शिलान्यास किया था। कॉरिडोर बनने के बाद बाबा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का स्वरूप और अधिक भाव और दिव्या होता जा रहा है। आज भी यह देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा श्री काशी विश्वनाथ दर्शन के निमित्त आते हैं।
आज पूरे देश में देवी अहिल्याबाई की जयंती का त्रिशताब्दी वर्ष बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ मनाया जा रहा है आज इस त्रिशताब्दी वर्ष का यह पावन अवसर उसे कालखंड में उनकी अदम्य संकल्प शक्ति, उनका साहस, उनकी महानता, उनके आदर्श तथा उनके योगदान उनकी विरासत जन-जन को प्रेरित कर रही है। जिनके आदर्श को अपनाकर निश्चित ही एक सुनहरे भविष्य का निर्माण हो सकता है। उनके जीवन से प्रेरित होकर मैं इंदौर और महेश्वर गई। वहां ऐसा प्रतीत हुआ मानव जैसे कि आज भी उनके इस रूप की चेतना उनकी स्मृतियों की गुंज जन-जन के हृदय में बस रही है।
ऐसी कर्मयोगिनी, ज्ञानयोगिनी, धर्मयोगिनी जैसी अदम्य एवं अद्भुत व्यक्तित्व वाली देवी अहिल्याबाई को उनके जयंती के त्रिशताब्दी वर्ष पर मेरा शत-शत नमन हैं।
शिव तो जागे किंतु देश का ,शक्ति जागरण शेष है। देव जुटे यत्नों में लेकिन,असुर निवारण शेष है ,वक्ष विदारण शेष है।।
गुंजन नंदा काशी
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