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कृष्णायम्
प्रिय पथिक! जीवन की यात्रा में एक ऐसा पल आता है, जब हृदय पुकार उठता है—"मैं श्रीकृष्ण बनना चाहता हूँ!" यह पुकार सिर्फ शब्द नहीं, अपितु आपकी आत्मा की वह गूँज है, जो आपको पूर्णता, प्रेम और आनंद की ओर ले जाना चाहती है।
श्रीकृष्ण होना केवल ईश्वर होना नहीं, अपितु मनुष्य होते हुए भी हर परिस्थिति में दिव्यता का दर्शन कराना है। वे युद्धभूमि में भी मुस्कुराते हैं, जीवन की चुनौतियों को भी लीला बनाते हैं, और घोर विपत्ति में भी शांति से कर्म करते हैं। श्रीकृष्ण बनना यानी अपने भीतर के अंधकार को मिटाकर आनंद, प्रेम और उत्साह का वह दीप जलाना, जो हर परिस्थिति में प्रकाश देता रहे।
यह पुस्तक आपको उसी श्रीकृष्ण की ओर ले जाएगी, जो आपके भीतर पहले से ही विद्यमान हैं। आइए, इस आनंदमय यात्रा में सम्मिलित हों—श्रीकृष्ण बनने की यात्रा में!
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