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प्रस्तुत उपन्यासक एक कथोप-कथन-
“बौआ, अखन अहाँ बालबोध छी, जिनगीक धक्का-पंजासँ भेँट नै भेल अछि। अपने उठि कऽ ठाढ़ भऽ जाएब धिया-पुताक खेल नै छी, तँए छोड़ियो देब उचित नहि। अहाँ अपन दिशाहीन परिवारकेँ दिशा दऽ सकै छिऐ, मुदा ओहूमे कठिनाइक सामना करए पड़त। वैचारिक दौड़मे पहिल संघर्ष समाजमे होइ छइ। जखने आगू दिस बढ़ए चाहब तखने रूढ़िवादी विचार, जे समाजक कोढ़ रहल अछि, अपन सोल्हन्नी शक्तिसँ विरोध करए लगत। मुदा तेकर चिन्ता नहि। जहिना सूरसाक मुहसँ हनुमान सुरक्षित निकैल आगू बढ़ि गेला तहिना टपान अछि, टपि जाएब। जाबे धरि कोनो परिवारक आमदनी खर्चासँ कम रहतै, ओ परिवार पाछू मुहेँ ढरकबे करत। अहाँ तँ सहजे त्रिकाल–काँच अवस्था, पुरुष विहिन परिवार आ परिवारमे ओहन रोगी जे मृत्युक करीब पहुँच गेल अछि–मे पड़ल छी। तँए अपन खेनाइक संग घोड़ाक दनोक जोगार करैत मोछमे तेल लगा सवारियो करैक अछि।”
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