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जगदीश प्रसाद मण्डल शिल्पी छैथ, कथ्यकेँ तेना समेट लइ छैथ जे पाठक विस्मित रहि जाइत अछि। मुदा हिनका द्वारा कथ्यकेँ (कथा, उपन्यास, नाटक, प्रेरक-कथा सभमे) उद्देश्यपूर्ण बनेबाक आग्रह आ क्षमता हिनका मैथिली साहित्यमे ओइ स्थानपर स्थापित करैत अछि, जेतए-सँ मैथिली साहित्यक इतिहास “जगदीश प्रसाद मण्डलसँ पूर्व” आ “जगदीश प्रसाद मण्डलसँ” ऐ दू खण्डमे पाठित होएत।
समाजक सभ वर्ग हिनकर कथ्यमे भेटैत अछि आ से आलंकारिक रूपमे नै वरन अनायास, जे मैथिली साहित्य लेल एकटा हिलकोर एबाक समान अछि। हिनकर कथ्यमे केतौ अभाव-भाषण नै भेटत, सभ वर्गक लोकक जीवन शैलीक प्रति जे आदर आ गौरव ओ अपन कथ्यमे रखै छैथ से अद्भुत।
हिनकर कथ्यमे नोकरी आ पलायनक विरूद्ध पारम्परिक अजीविकाक गौरव महिमा मण्डित भेटैत अछि। आ से प्रभावकारी होइत अछि हिनकर कथ्य आ कर्मक प्रति समान दृष्टिकोणक कारणसँ आ से अछि हिनकर बेकतीगत आ समाजिक जीवनक श्रेष्ठताक कारणसँ। जे सोचै छी, जे करै छी; सएह लिखै छी तइ कारणसँ। यात्री आ धूमकेतु सन उपन्यासकार आ कुमार पवन आ धूमकेतु सन कथा-शिल्पीक अछैत मैथिली भाषा जनसामान्यसँ दूर रहल। मैथिली भाषाक आरोह-अवरोह मिथिलाक बाहरक लोककेँ सेहो आकर्षित करैत रहल आ ओइ भाषाक आरोह-अवरोहमे समाज-संस्कृति-भाषासँ देखौल जगदीशजीक सरोकारी साहित्य मिथिलाक समाजिक क्षेत्रटामे नै वरन आर्थिक क्षेत्रमे सेहो कान्ति आनत।
गजेन्द्र ठाकुर सम्पादक- विदेह
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