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एक दिस बैंकक कर्जक सूदि, जइमे रौदी-दाही किछु ने होइ छै, आ दोसर दिस तीन गोरेक परिवारक खर्चक बीच मेवालाल फँसि गेला। ओहुना बुझै छिऐ जे साधारण मेशोमे हजार-डेढ़-हजार महिना एक बेकतीक खर्च भेल। से तँ भेल सोझे रतुका-दिनक भोजन, मुदा जलखैक संग जिनगीमे साइयो अनेक खर्च तँ बाँकीए अछि। खेती सहजे नष्ट भऽ गेल। दोसर कोनो उपाय मेवालाल नहि देख रहल छला। ऐठाम दुनू बात अछि, दुनूक उपायो अछिए। गामक जे पानिक रूप अछि, तैठाम उपाय एकभग्गू भऽ गेल अछि। आ दोसर, लोकक मन-बुधिकेँ ई पकैड़ नेने अछि जे शहर-बजारमे ओहिना लोककेँ मुँह-मंगा भेटैए। ओना, जीवन-यापन करैक साधन गामक अपेक्षा शहर-बजारमे बेसी भइये गेल अछि। हजारो रंगक कारोबार पसरल अछिए, जे गाममे नइ अछि...।
प्रश्न उठैत अछि, की गामकेँ ओहिना तरमुहाँ छोड़ि देबै आकि पितृ भूमि, मातृ भूमि, मिथिला भूमि बुझि विचारि किछु करबो करबै? की खिखिरक फलकल नाँगैर जकाँ सोझे फलकल छी आकि लुक्खीक नाँगैर जकाँ सुर्राइतो छी? खाएर जे छी, जेतए छी, मौजसँ छी, नीक छी...।
हम सभ किसान छी, माटि-पानिक बीच बसल धरतीपर ओहन जीव बनि माटि-पानिसँ बनलो छी आ माटिये-पानिपर जीवो करै छी। साल भरिक चक्रमे किछु दिन पानि धरतीक निच्चाँमे रहैए आ किछु दिन धरतीक ऊपरोमे सेहो पसैर जाइए। माने, किछु दिन पानिक छातीपर चढ़ि माटि सवारी कसैए आ किछु दिन माटिक छातीपर चढ़ि पानि सवारी कसैए। बरसातक समय बाढ़ि-बर्खासँ धरतीक ऊपर पानि पसरल रहैए आ रौदी पाबि पानिकेँ तर करैत माटि ऊपर रहैए। मुदा दुनूमे जहिना उपज शक्ति छै तहिना संहार शक्ति सेहो छइहे। जइ रूपक संगम दुनूक बीच जखन होइए ओइ रूपक जीवधारीक जन्म होइए जइसँ धरतीक शोभा-सुन्दर निखारैए।
गाछ-बिरीछबला शोभा-सुन्दर गाम हुअए आकि दहाइत-भँसियाइत उजरल-उपटल गाम, ओइमे माल-जालसँ लऽ कऽ गाछ-बिरीछक संग लोको-वेद आ चिड़ैयो-चुनमुनी रहबे करत। तइमे जहिना चिड़ै-चुनमुनी आकि माल-जाल केम्हरो मटिबसू अछि आ केम्हरो पनिबसू, तहिना ने मनुखोक संग अछि, जे मनुखक काजो आ बुधियो-विचारमे देखल जा सकैए। खाएर जे अछि, जेतए अछि, तेकरा तेतै रहए दियौ, अपना सभ अप्पन विचार करू...।
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