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जगदीश प्रसाद मण्डल लोकक मोनमे पैसै छथि, बरहम बाबाक मोनमे पैसै छथि। आ तँए ने बरहम बाबा आ लोक दुनूक मोन हर्खित छै, से भाँज ओ लगा लै छथि। शम्भुआकेँ शम्भु बनैत ओ देखै छथि आ फेर दरबारी दास (शम्भुदास) बनैत सेहो। ढहैत बेवस्थाक तरमे शम्भुदासक पड़ब मिथिलाक कलाक राँइ-बाँइ हेबाक निशानी अछि। जगदीश प्रसाद मण्डलक कथाक मुख्य पात्र ने ‘भैंटक लावा’मे आ ने ‘बिसाँढ़’ कथामे राँइ-बाँइ होइए, तखन शम्भुदास कोनो ‘दरवारी’ दास भऽ गेल? की जगदीश प्रसाद मण्डलमे कोनो परिवर्तन तँ नै आबि गेलन्हि, की ओ थाकि रहल छथि आ हारि रहल छथि?
मुदा जँ गँहिकी नजरिसँ देखबै तँ शम्भुदास कोनो तरहेँ ‘भैंटक लावा’ बा ‘बिसाँढ़’क हीरोसँ न्यून नै अछि। तखन ओ किए हारि रहल अछि बा जगदीश प्रसाद मण्डल ओकरा किए हरबा रहल छथि? ऐँ यौ, ओ तँ लेखक छथि, ऐ पात्र सभक भगवान, ओ एकरा जितबेलथि किए नै?
जगदीश प्रसाद मण्डलक पात्र फुसियाँहीक नै होइत अछि, आ तँए ओ आर्थिक मोर्चापर जीति जाइत अछि, जतए हाथसँ काज होइ छै, मुदा कला (आ साहित्य सेहो)क शास्त्रीय घुरछी, जे आंगुरपर गानल जाइबला लोक द्वारा निर्मित अछि, मे ओ ओझरा जाइत अछि। ओकरा आर्थिक स्थितिसँ लड़बाक छलै, लड़ल आ जीतल। कलाक क्षेत्रमे ओ दरबारी बनि गेल, तखने ओकर गुजर हेतै मुदा एतौ एकटा विद्रोहक झण्डा उठेलक शम्भुदास, घर-परिवार बिसरि बिआह नै करबाक ओकर निर्णय सिद्ध केलक जे ‘दरबारी’ दास बनब ओकर सुविधावादी प्रवृत्ति नै छै, लचारी छै आ तै लेल ओ बिआह नै करबाक निर्णय केलक। घर-परिवार लेल ओ सुविधावादी नै बनल, आ घर-परिवार बिसरि बिआह नै करबाक ओकर निर्णय ‘दरबारी’ दास बनबाक लेल कएल ओकर पश्चाताप मात्र अछि।
समानान्तर परम्परा कलाकेँ दरबारी दास बनबासँ रोकत। जँ शम्भुदास हारत तँ हारत मिथिला। जगदीश प्रसाद मण्डल नै हारता, हारत मिथिला। जँ मिथिला ऐ चेतौनीकेँ नै चिन्हत।
-गजेन्द्र ठाकुर
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