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यह पुस्तक प्राचीन भारतीय ग्रंथों में वर्णित दशावतार की अवधारणा को आधुनिक सामाजिक दृष्टिकोण से पुनर्परिभाषित करता है। इसमें वैदिक, पौराणिक और संत साहित्य के आधार पर यह विश्लेषण प्रस्तुत किया है कि कैसे प्रत्येक अवतार समाज की चेतना के एक उत्तरदायी रूप में प्रकट होता है—और किस प्रकार यह विचार आज के समाज में एकता, सेवा, न्याय और करुणा जैसे मूल्यों को पुनर्स्थापित करने में सहायक हो सकता है।
पुस्तक का उद्देश्य केवल धार्मिक या पौराणिक व्याख्या नहीं है, बल्कि यह एक प्रगतिशील सामाजिक संवाद है—जो प्राचीन शास्त्रों की झलकियों को आज के सामाजिक ताने-बाने से जोड़ता है। मुझे विश्वास है कि यह ग्रंथ समकालीन पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा, विशेषतः उन लोगों के लिए जो भारतीय दर्शन को सामाजिक समरसता और चेतना के संदर्भ में समझना चाहते हैं।
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