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हमारे भीतर एक महाशक्तिशाली उपचारक और रक्षक तत्व है।
इसे अनेक नाम से जाना जाता है, जैसे -
> प्रतिकार शक्ति
> आंतरिक उपचारक तत्व
> जीवन शक्ति / आत्म शक्ति, आदि।
यह आंतरिक उपचारक तत्व, अनंत प्रज्ञा और अनंत शक्ति का खजाना है।
माँ के गर्भ में, एक सूक्ष्म पेशी में से हमारे संपूर्ण शरीर का निर्माण इसी अनंत प्रज्ञा द्वारा हुआ है! जो निर्माण कर सकता है वह उपचार भी कर सकता है!
अगर आंतरिक उपचारक तत्व सशक्त है, तो वह सभी प्रकार की बीमारियों से हमारी रक्षा करता है और बीमारी आने पर उसे जल्दी से ठीक भी करता है।
कमजोर प्रतिकार शक्ति ही सभी रोगों का मुल कारण है।
आज कल कीटाणु से होनेवाले और अन्य रोग बढ़ते जा रहे हैं। अधिकतर लोग वातावरण और खाने पीने के कीटाणु, वातावरण के केमिकल या अन्य बाहरी घटकों को इसका कारण मानते हैं।
लेकिन यह अर्ध-सत्य हैं।
एक ही तरह के वातावरण में रहने वाले और एक जैसा बाहर का खाना खाने वाले अनेक लोगों से सिर्फ कुछ लोग बीमार पड़ते है।
ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि कीटाणु जन्य रोगों का मुख्य कारण कीटाणु या बाहरी घटक नहीं, लेकिन कमजोर आंतरिक उपचारक हैं।
अगर हमारी आंतरिक उपचारक सशक्त है, तो वह हर तरह के कीटाणु और बीमारी से हमारी रक्षा करती है।
रोग और इलाज की दर्दनाक यातनाओं से बचना है, तो हमारे आंतरिक उपचारक तत्व को सशक्त बनाना आवश्यक है।
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