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गुजरे हुए जीवन का कटू सत्य , मेरे लिए आज बहुत मूल्यवान है | कहानी--संग्रह 'भींगी पलकें ’ को आप विद्वान् पाठकों के समक्ष रखने से पहले , मैं अपने विगत कृतित्व को आलोचक की दृष्टि से देखने की अनाधिकार चेष्टा नहीं करना चाहती | युग-धारा संग मेरी कहानियों का कैसा सम्बंध है, मैं इस पर थोड़ा सा आपका ध्यान आकृष्ट करना, एक लेखिका होने के नाते अपना धर्म समझती हूँ | 'रसवन्ती' कहानी-संग्रह, इसके पहले की कहानी-संग्रह है | इस संचरण के कृतित्व के प्रति मेरे आलोचक थोड़ा सा कृपालु और उदार रहे , इसलिए कि इसके पहले मेरी अन्य रचनाओं को वे कोमल, कांत कलेवर दे चुके हैं |
‘भींगी पलकें ’ , मेरी कहानी-संग्रह की, पाँचवी उत्थान की परिचायिका है |
इसमें संचयित कहानियों को मैं यथासंभव मानवीय भावनाओं का वस्त्र पहनाकर एवं मानवीय रूप-रंग, आकार ग्रहण कराकर, एक परिपूर्ण मूर्त रूप देने की अप्राण चेष्टा की हूँ...
भींगी पलकें डॉ. तारा सिंह
an excellent book for readers. I am a real fan of the writer.