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गुजरे हुए जीवन का कटू सत्य , मेरे लिए आज बहुत मूल्यवान है | कहानी--संग्रह 'भींगी पलकें ’ को आप विद्वान् पाठकों के समक्ष रखने से पहले , मैं अपने विगत कृतित्व को आलोचक की दृष्टि से देखने की अनाधिकार चेष्टा नहीं करना चाहती | युग-धारा संग मेरी कहानियों का कैसा सम्बंध है, मैं इस पर थोड़ा सा आपका ध्यान आकृष्ट करना, एक लेखिका होने के नाते अपना धर्म समझती हूँ | 'रसवन्ती' कहानी-संग्रह, इसके पहले की कहानी-संग्रह है | इस संचरण के कृतित्व के प्रति मेरे आलोचक थोड़ा सा कृपालु और उदार रहे , इसलिए कि इसके पहले मेरी अन्य रचनाओं को वे कोमल, कांत कलेवर दे चुके हैं |
‘भींगी पलकें ’ , मेरी कहानी-संग्रह की, पाँचवी उत्थान की परिचायिका है |
इसमें संचयित कहानियों को मैं यथासंभव मानवीय भावनाओं का वस्त्र पहनाकर एवं मानवीय रूप-रंग, आकार ग्रहण कराकर, एक परिपूर्ण मूर्त रूप देने की अप्राण चेष्टा की हूँ | इसमें अंकित कुछ एक कहानियाँ वर्तमानकाल की मनोवृति की सच्ची दर्पण हैं , तो कुछ कहानियाँ व्यक्तिगत सुख-दुखों एवं मानसिक उहापोहों को नवीण धरातल पर उठाने के साथ ही, जग जीवन से भी नवीण रूप से सम्बंध स्थापित करने की जीवनाकांक्षा को प्रेरित करती हैं ; तो कुछ लोकजीवन के कलुष पंक को धोने के लिए, नए मानव की अंतःपुकार हैं |
युग विशेष में उत्पन्न कहानीकार ने भी अपने युग के आदर्श को
असाधारणता के साथ अपनी कहानी में प्रतिष्ठित किया है | इतना ही नहीं, यह आदर्श कभी, किसी हाल में पराजित न हो, इसकी सतर्कता का भी ख्याल रखा है ; महान कहानीकार प्रेमचंद्र की, 'सवा सेर गेहूँ', 'पौष की रात', “नमक हलाल', आदि, आदि कितना भी युग बदले, इसकी प्रतिष्ठा पर आँच नहीं आयेगी | इसकी महत्ता जो कल थी, वही आज है, और कल भी रहेगी |
युग संघर्ष के अनेक रूपों को मैंने अपनी कहानी-संग्रह में उद्धृत करने की यथासंभव कोशिश की है, तथा आनंद, सौन्दर्य, प्रेम, शान्ति आदि मेरी कहानी-सृजन चेतना का मौलिक मूलभूत गुण है | हमें मानव--जगत को इसी सत्य का दर्पण बनाना है | यही एकमात्र सभ्यता, संस्कृति तथा धर्मों का अनादिकाल से प्रश्न और
लक्ष्य भी रहा है |
मेरी प्रेरणा स्रोत, नि:संदेह , माँ काली हैं; जिनकी आराधना मैं बचपन से करती आ रही हूँ | उनकी चरणों में मेरा शत-शत प्रणाम ! मैं न दार्शनिक हूँ, न दर्शनग्य ही , और न ही मेरा अपना ही कोई दर्शन है, ये तो उस महाशक्ति का भाव प्ररोह है, जिन्हें मैंने अपनी रचनाओं में, शब्द मूर्त्त करने का प्रयत्न किया है | मेरी रचनाओं की कुंजी उन्हीं के पास है | मेरा तपोवन भी उन्हीं के चरणों के नीचे है, जहाँ मुझे शांति, पवित्रता तथा सद्विचारों का अक्षय दान प्राप्त होता है |
अंत में मैं इस भूमिका के रूप में प्रस्तुत अपने विचारों, विश्वासों तथा जीवन मान्यताओं की त्रुटियों एवं कमियों के लिए आप सभी विद्वान् पाठकों से क्षमा प्रार्थना करती हूँ | फिर मिलूँगी, एक नई कहानी-संग्रह लेकर ; इसी वादे के साथ-----
भींगी पलकें डॉ. तारा सिंह
an excellent book for readers. I am a real fan of the writer.