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भींगी पलकें (eBook)

कहानी-संग्रह
Type: e-book
Genre: Literature & Fiction
Language: Hindi
Price: ₹150
(Immediate Access on Full Payment)
Available Formats: PDF

Description

गुजरे हुए जीवन का कटू सत्य , मेरे लिए आज बहुत मूल्यवान है | कहानी--संग्रह 'भींगी पलकें ’ को आप विद्वान्‌ पाठकों के समक्ष रखने से पहले , मैं अपने विगत कृतित्व को आलोचक की दृष्टि से देखने की अनाधिकार चेष्टा नहीं करना चाहती | युग-धारा संग मेरी कहानियों का कैसा सम्बंध है, मैं इस पर थोड़ा सा आपका ध्यान आकृष्ट करना, एक लेखिका होने के नाते अपना धर्म समझती हूँ | 'रसवन्ती' कहानी-संग्रह, इसके पहले की कहानी-संग्रह है | इस संचरण के कृतित्व के प्रति मेरे आलोचक थोड़ा सा कृपालु और उदार रहे , इसलिए कि इसके पहले मेरी अन्य रचनाओं को वे कोमल, कांत कलेवर दे चुके हैं |
‘भींगी पलकें ’ , मेरी कहानी-संग्रह की, पाँचवी उत्थान की परिचायिका है |
इसमें संचयित कहानियों को मैं यथासंभव मानवीय भावनाओं का वस्त्र पहनाकर एवं मानवीय रूप-रंग, आकार ग्रहण कराकर, एक परिपूर्ण मूर्त रूप देने की अप्राण चेष्टा की हूँ | इसमें अंकित कुछ एक कहानियाँ वर्तमानकाल की मनोवृति की सच्ची दर्पण हैं , तो कुछ कहानियाँ व्यक्तिगत सुख-दुखों एवं मानसिक उहापोहों को नवीण धरातल पर उठाने के साथ ही, जग जीवन से भी नवीण रूप से सम्बंध स्थापित करने की जीवनाकांक्षा को प्रेरित करती हैं ; तो कुछ लोकजीवन के कलुष पंक को धोने के लिए, नए मानव की अंतःपुकार हैं |
युग विशेष में उत्पन्न कहानीकार ने भी अपने युग के आदर्श को
असाधारणता के साथ अपनी कहानी में प्रतिष्ठित किया है | इतना ही नहीं, यह आदर्श कभी, किसी हाल में पराजित न हो, इसकी सतर्कता का भी ख्याल रखा है ; महान कहानीकार प्रेमचंद्र की, 'सवा सेर गेहूँ', 'पौष की रात', “नमक हलाल', आदि, आदि कितना भी युग बदले, इसकी प्रतिष्ठा पर आँच नहीं आयेगी | इसकी महत्ता जो कल थी, वही आज है, और कल भी रहेगी |
युग संघर्ष के अनेक रूपों को मैंने अपनी कहानी-संग्रह में उद्धृत करने की यथासंभव कोशिश की है, तथा आनंद, सौन्दर्य, प्रेम, शान्ति आदि मेरी कहानी-सृजन चेतना का मौलिक मूलभूत गुण है | हमें मानव--जगत को इसी सत्य का दर्पण बनाना है | यही एकमात्र सभ्यता, संस्कृति तथा धर्मों का अनादिकाल से प्रश्न और
लक्ष्य भी रहा है |
मेरी प्रेरणा स्रोत, नि:संदेह , माँ काली हैं; जिनकी आराधना मैं बचपन से करती आ रही हूँ | उनकी चरणों में मेरा शत-शत प्रणाम ! मैं न दार्शनिक हूँ, न दर्शनग्य ही , और न ही मेरा अपना ही कोई दर्शन है, ये तो उस महाशक्ति का भाव प्ररोह है, जिन्हें मैंने अपनी रचनाओं में, शब्द मूर्त्त करने का प्रयत्न किया है | मेरी रचनाओं की कुंजी उन्हीं के पास है | मेरा तपोवन भी उन्हीं के चरणों के नीचे है, जहाँ मुझे शांति, पवित्रता तथा सद्विचारों का अक्षय दान प्राप्त होता है |
अंत में मैं इस भूमिका के रूप में प्रस्तुत अपने विचारों, विश्वासों तथा जीवन मान्यताओं की त्रुटियों एवं कमियों के लिए आप सभी विद्वान्‌ पाठकों से क्षमा प्रार्थना करती हूँ | फिर मिलूँगी, एक नई कहानी-संग्रह लेकर ; इसी वादे के साथ-----

About the Author

श्रीमती तारा सिंह हिन्दी साहित्यकार हैं। डॉ॰ श्रीमती तारा सिंह की 36 पुस्तकें मीनाक्षी प्रकाशन, मीनाक्षी प्रकाशन, दिल्ली द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें : (१) कविता-संग्रह – 20

(२) गज़ल संग्रह— 7

(३) कहानी संग्रह— 5

(४) उपन्यास -- 2

(५) आलेख -- 2

इसके अलावा, इनकी 114 सहयोगी काव्य-संकलन प्रकाशित हो चुकी हैं। इनकी रचनाएँ स्वर्गविभा सहित 27 लोकप्रिय वेबसाइटों पर पढ़ी जा सकती हैं। इनकी एक गीत, ’सिपाई जी’ हिन्दी सिनेमा के लिये शीर्ष गीत (Title Song) के रूप में ली गई है।
पुरस्कार

डॉ॰ श्रीमती तारा सिंह, 247 विभिन्न राष्ट्रीय / अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा सम्मानित व पुरस्कृत हो चुकी हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं : साहित्य महामहोपाध्याय, विद्यासागर, विद्या वारिधि, वोमैन आफ़ दी इयर अवार्ड, मदर टेरेसा अवार्ड, कबीर पुरस्कार, भारत भूषण अवार्ड, इण्डो-नेपाल सद्भावना अवार्ड, राजीव गांधी अवार्ड, भारत ज्योति अवार्ड आदि।
वर्तमान कार्यक्षेत्र
हिन्दी साहित्यकार होने के नाते, हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये डॉ॰ श्रीमती तारा सिंह ने एक लोकप्रिय हिन्दी वेबसाइट, स्वर्गविभा की स्थापना की। विश्व साहित्यकारों की चहेती, ’स्वर्ग विभा ’ आज गागर में सागर है। इसमें हिन्दी कहानियाँ, कविताएँ, ग़ज़ल, उपन्यास, आलेख आदि, सभी अपने- अपने मर्यादित स्थान पर रहते हुये, विश्व को एक सूत्र में बाँधने का प्रयत्न कर रही हैं। हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा हो, स्वर्गविभा पत्रिका की स्थापना का यही उद्देश्य है। हिन्दी की ख्याति और प्रगति को विस्तार मिले, इसके लिये, स्वर्गविभा तारा सम्मान का निर्णय लिया गया; जो कि निर्विघ्न आज तीन सालों से चल रहा है। इसमें हिन्दी विद्वानों में से किन्हीं पाँच को चयनित कर, उन्हें एक विशाल समारोह में सम्मानित किया जाता है। ये साहित्यिक, सांस्कृतिक कला संगम अकादमी के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। ये कविता, ग़ज़ल, कहानी, उपन्यास व सिनेमा के लिए गीत लिखने और साहित्यिक समारोहों में इन्हें गाने में काफ़ी रूचि रखती हैं। ये कभी- कभी समाज-सेवा कार्यक्रमों में भी दिल से हाथ बँटाती हैं।

Book Details

ISBN: 9789386143839
Publisher: मिनाक्षी प्रकाशन
Number of Pages: 51
Availability: Available for Download (e-book)

Ratings & Reviews

भींगी पलकें

भींगी पलकें

(5.00 out of 5)

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1 Customer Review

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swargvibha 3 years, 5 months ago

भींगी पलकें डॉ. तारा सिंह

an excellent book for readers. I am a real fan of the writer.

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