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डॉ. श्रीमती तारा सिंह, स्वर्गविभा हिंदी वेबसाईट (www.swargvibha.com) एवं स्वर्गविभा ऑन लाइन पत्रिका की प्रधान संपादिका व प्रशासक, 36 पुस्तकों की रचयिता तथा देश-विदेश से 253 सम्मान/मानदोपाधि/पुरस्कार प्राप्त गज़लकार (साहित्यकार) हैं | तारा जी के आइने-खाने में कुल सात, ग़ज़ल पुस्तकें हैं | जिनमें जिन्दगी, इंसानियत , सौन्दर्य, प्रेम, तसव्वूर, आत्मनिर्भरता , मयकदा तथा कुछ ग़ज़लें , रोजाना की जिन्दगी से जुडी हुई हैं | इनका मानना है , जब ग़ज़ल रूपी आइने में, ग़ज़ल-प्रेमियों को, अपने जीवन की झलक दिखाई देती है | उससे कुछ प्रेरणा मिलती है | जीवन-संघर्ष के लिये प्रोत्साहित करती है तथा दुःख-दर्द का साथ बनकर ढाढ़स दिलाती है | तभी रचनाकार की रचनायें, चाहे वह कहानी हो, गद्य हो, पद्य हो या ग़ज़ल , सीमाएँ पार कर सार्वभौम बनती है |
आज जिन्दगी की विभिन्न समस्याओं की आपा-धापी में लोग उलझे और परेशान रहते हैं | कभी-कभी कब्र और जिंदगी में भी अंतर नहीं कर पाते हैं | कारण उन्हें है हर वक्त स्तित्व की चिंता खाये जाती है | ऐसे समय में अगर उनको ग़ज़ल की गंगा के मंथन से निकली हुई, कुछ गजल-रत्न मिल जाय तो, वे थोड़ी देर के लिए , अपना दुःख-दर्द भुलाकर मुस्कुरा सकते हैं | उनकी आत्मा ,जो शारीर की गहराई में क्रियाशील रहती है , वह खुश हो सकती है | आत्मा की स्वस्थता के बिना, बाह्य सुन्दरता निरर्थक है | शारीर का सौन्दर्य स्वस्थ आत्मा से बढ़ता है |
डॉ. तारा सिंह की हर ग़ज़ल, आपकी आत्मा को छू लेगी, ऐसा तो दावा नहीं कर सकता | फिर भी आप इसे पढ़ें , मुझे विशवास है, आपको भरपूर आनंद देगा |
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