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पुस्तक के बारे में
इस पुस्तक को संपादित करने का आशीर्वाद प्रभु राम द्वारा प्राप्त हुआ है। प्रभु राम हमारे जीवन के हर क्षण में विद्यमान हैं। हमारी सुबह राम-राम से होती है । किसी से मिलने पर राम-राम से सम्बोधित करते हैं। जीवन का अंत भी राम नाम से ही होता है। राम नाम हम सनातनियों के रोम रोम में समाया हुआ है। प्रभु राम मर्यादा, संयम,संबंधों के प्रति निष्ठा, कर्तव्यपरायाणता के सूचक हैं। वे आदर्श पुत्र, भाई, पति, पिता, मित्र, राजा सब कुछ हैं। प्रभु राम ने मनुष्य रूप में अवतरित होकर संसार के समक्ष मर्यादित आचरण की अद्भुत मिसाल रखी जिसे कलयुग में हरएक मानव में जागृत करना है। इसी उद्देश्य को लेकर इस पुस्तक का शुभारंभ किया गया तथा आज यह आपके हाथों में है।
दो पुस्तक प्रकाशित होने के पश्चात मन में कुछ नया करने की इच्छा जागृत हुई । परंतु क्या करना है यह समझ नहीं आ रहा था। इसी उधेड़बुन में दिन गुजरते जा रहे थे कि प्रभु राम की कृपा हुई।एक दिन अपने जीवन साथी डॉ अजय गर्ग के साथ खरीदारी करने जा रही थी, साथ में बिटिया खुशी गर्ग भी थी। अजय गर्ग अब तक चार व्यवसायिक वैबसाइट बना चुके हैं अतः बातों बातों में हमने उन्हें उलहाना देते हुए कहा, कुछ हमारा भी मार्गदर्शन कर दो। कुछ साहित्यिक करना है क्या करें, अपनी राय दीजिए।चंद पल चुप रहने के पश्चात उनके मुख से निकला " श्रीराम " हमने चौंकते हुए पूछा,मतलब ? श्रीराम काव्य पर वैबसाइट बनाओ, सभी रामभक्तों को एक साथ जोड़ों साहित्य के साथ धर्म कार्य भी आवश्यक है। बात हमें भी जंच गई और आरंभ हो गई नई यात्रा।
इस प्रकार वैबसाइट Shrirammandirkavya.com का शुभारंभ हुआ।
सभी रामभक्त रचनाकारों ने रचनाएं भेजी।जब कोई भक्त पूजा करता है तो प्रसाद भी आवश्यक है। अतः छोटा सा 101 रुपए का रामलला का प्रसाद देने का निश्चय किया गया। सभी का साथ मिला। वैबसाइट के बाद सभी रचनाओं का साझा संकलन निकालने का निश्चय किया जो अब राम काव्य संकलन 1 के रुप में आपके हाथों में है। परंतु संकलन श्रृंखला जारी रहेगी जब तक प्रभु राम चाहेंगे।
इस पुस्तक में भारत के अलग-अलग राज्यों से तथा विदेशों से रचनाकारों के प्रभु राम के प्रति उदगार काव्य रूप में सम्मिलित हैं। इन रामभक्तों के साथ साथ उन सभी कारसेवकों, साधु संतों, कार्यकर्ताओं को नमन जिनके कारण 22 जनवरी 2024 को राम लला का वनवास समाप्त होगा।
1528 में बाबर की शय पर मंत्री मीर बाकी ने राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाईं थी।1853 में हिंदुओं ने करना आरंभ किया। निर्मोही अखाड़े के महंत रघुवर दास ने 1885 में स्थायी मंदिर बनाने के लिए पहली बार दीवानी मुकदमा किया।
22 दिसंबर 1949 को गुंबद के नीचे मूर्तियां प्रकट हुई। गोपाल सिंह विशारद ने 16 जनवरी 1950 को फैजाबाद के सिविल न्यायालय में प्रकट हुई मूर्तियों की पूजा अर्चना की मांग की। 5 दिसंबर 1950 को महंत रामचंद्र परमहंस ने सिविल जज की अदालत में मुकदमा दायर किया जिसमें मांग की गई कि दूसरे पक्ष के लोग पूजा अर्चना में बाधा नहीं डालें। 17 दिसंबर 1959 को रामानंद संप्रदाय की तरफ से निर्मोही अखाड़े के छह व्यक्तियों ने मुकदमा दायर कर इस स्थान पर अपना दावा ठोका। साथ ही मांग की कि रिसीवर प्रियदत्त राम को हटाकर उन्हें पूजा-अर्चना की अनुमति दी जाए। यह उनका अधिकार है।
हरिद्वार में विराट हिंदू सम्मेलन हुआ। संतों ने देवोत्थान एकादशी (30 अक्तूबर 1990) को मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा की घोषणा की।
1 सितंबर 1990 के दिन अयोध्या में अरणी मंथन कार्यक्रम हआ और उससे अग्नि प्रज्ज्वलित की गई। विहिप ने इसे ‘राम ज्योति’ नाम दिया। इस ज्योति को गांव-गांव पहुंचाने के अभियान के सहारे विहिप ने लोगों को कारसेवा में हिस्सेदारी के लिए तैयार किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवा पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की। कहा, ‘अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा।’
25 सितंबर 1990
भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने कारसेवा में हिस्सेदारी की घोषणा के साथ गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथयात्रा शुरू की। पर, उन्हें बिहार के समस्तीपुर में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने गिरफ्तार कर लिया। भाजपा ने केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
30 अक्तूबर 1990:
अयोध्या में कारसेवक जन्मभूमि स्थल की ओर बढ़े। सुरक्षा बलों से भिड़ंत। अशोक सिंहल सहित कई कारसेवक घायल। कुछ कारसेवकों ने गुंबद पर पहुंचकर भगवा झंडा लगाया।
2 नवंबर 1990:
कारसेवकों के जन्मभूमि मंदिर कूच की घोषणा हुई। पुलिस ने गोली चलाई। कोठारी बंधुओं सहित कई कारसेवकों की मृत्यु। विरोध में जेल भरो आंदोलन।
4 अप्रैल 1991:
दिल्ली में मंदिर निर्माण को लेकर विराट हिंदू रैली। उसी दिन मुलायम सिंह यादव सरकार ने इस्तीफा दे दिया। चुनाव हुए और कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी।
अक्तूबर 1991:
कल्याण सिंह सरकार ने ढांचे और उसके आसपास की 2.77 एकड़ जमीन अपने अधिकार में ले ली। श्रीराम जन्मभूमि न्यास ने श्री राम कथाकुंज के लिए भूमि की मांग की। कल्याण सिंह सरकार ने 42 एकड़ जमीन श्रीराम कथाकुंज के लिए न्यास को पट्टे पर दी। इसके बाद न्यास ने वहां भूमि का समतलीकरण किया।
आंदोलन का फैसला
8 अप्रैल 1984 : वर्ष 1982 में विश्व हिंदू परिषद ने राम, कृष्ण और शिव के स्थलों पर मस्जिदों के निर्माण को साजिश करार दिया और इनकी मुक्ति के लिए अभियान चलाने का फैसला किया। फिर 8 अप्रैल 1984 को दिल्ली में संत-महात्माओं, हिंदू नेताओं ने अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि स्थल की मुक्ति और ताला खुलवाने को आंदोलन का फैसला किया।
1 फरवरी 1986 : फैजाबाद के जिला न्यायाधीश केएम पाण्डेय ने स्थानीय अधिवक्ता उमेश पाण्डेय की अर्जी पर इस स्थल का ताला खोलने का आदेश दे दिया। मुस्लिमों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया। इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में अपील खारिज हुई।
और हो गया शिलान्यास:-
जनवरी 1989 में प्रयाग में कुंभ मेले के अवसर पर मंदिर निर्माण के लिए गांव-गांव शिला पूजन कराने का फैसला हुआ। साथ ही 9 नवंबर 1989 को श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर के शिलान्यास की घोषणा की गई। काफी विवाद और खींचतान के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शिलान्यास की इजाजत दे दी। बिहार निवासी अनुसूचित जाति के कामेश्वर चौपाल से शिलान्यास कराया गया।
6 दिसंबर 1992 : अयोध्या पहुंचे हजारों कारसेवकों ने ढांचा गिरा दिया। इसकी जगह इसी दिन शाम को अस्थायी मंदिर बनाकर पूजा-अर्चना शुरू कर दी। केंद्र की तत्कालीन नरसिंह राव सरकार ने कल्याण सिंह सहित अन्य राज्यों की भाजपा सरकारों को भी बरखास्त कर दिया। उत्तर प्रदेश सहित देश में कई जगह सांप्रदायिक हिंसा हुई, जिसमें अनेक लोगों की मौत हो गई।
6 दिसंबर 1992 : अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि थाना में ढांचा ध्वंस मामले में हजारों लोगों पर मुकदमा।
8 दिसंबर 1992 : अयोध्या मेें कर्फ्यू लगा था। वकील हरिशंकर जैन ने उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में गुहार लगाई कि भगवान भूखे हैं। राम भोग की अनुमति दी जाए।
16 दिसंबर 1992 : ढांचे ढहाने के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान के लिए लिब्राहन आयोग गठित किया। इसे 16 मार्च 1993 को रिपोर्ट सौंपनी थी।
महत्वपूर्ण तारीखें
1 जनवरी 1993: न्यायाधीश हरिनाथ तिलहरी ने दर्शन-पूजन की अनुमति दे दी।
7 जनवरी 1993 : केंद्र सरकार ने ढांचे वाले स्थान और कल्याण सिंह सरकार द्वारा न्यास को दी गई भूमि सहित यहां पर कुल 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया।
अप्रैल 2002: उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने विवादित स्थल का मालिकाना हक तय करने के लिए सुनवाई शुरू की।
5 मार्च 2003: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को संबंधित स्थल पर खुदाई का निर्देश दिया।
22 अगस्त 2003 : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने न्यायालय को रिपोर्ट सौंपी। इसमें संबंधित स्थल पर जमीन के नीचे एक विशाल हिंदू धार्मिक ढांचा (मंदिर) के होने की बात कही गई।
5 जुलाई 2005: अयोध्या में विवादित स्थल पर छह आतंकियों के आत्मघाती आतंकी दस्ते का हमला। इसमें सभी मारे गए। तीन नागरिकों की भी मौत।
30 जून 2009: लिब्राहन आयोग ने तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह को रिपोर्ट सौंपी। आयोग का कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया।
30 सितंबर 2010 इस स्थल को तीनों पक्षों श्रीराम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया। न्यायाधीशों ने बीच वाले गुंबद के नीचे जहां मूर्तियां थीं, उसे जन्मस्थान माना।
21 मार्च 2017 : सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यस्थता से मामले सुलझाने की पेशकश की। यह भी कहा कि दोनों पक्ष राजी हों तो वह भी इसके लिए तैयार है।
6 अगस्त 2019 : सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिदिन सुनवाई शुरू की।
16 अक्तूबर 2019: सुनवाई पूरी। फैसला सुरक्षित। 40 दिन चली सुनवाई।
9 नवंबर 2019: सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित स्थल को श्रीराम जन्मभूमि माना और 2.77 एकड़ भूमि रामलला के स्वामित्व की मानी । निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावों को खारिज कर दिया। निर्देश दिया कि मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार तीन महीने में ट्रस्ट बनाए और ट्रस्ट निर्मोही अखाड़े के एक प्रतिनिधि को शामिल करे। उत्तर प्रदेश की सरकार मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक रूप से मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ भूमि किसी उपयुक्त स्थान पर उपलब्ध कराए ।
5 फरवरी 2020 : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की।
5 अगस्त 2020 : श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन।
इस प्रकार रामलला का कलयुगी वनवास समाप्त हो रहा है।
प्रभु राम की कृपा दृष्टि इसी प्रकार हम पर बनी रहे। इसी आशा के साथ द्वितीय संकलन की प्रतीक्षा में।जय श्री राम
डॉ बबिता 'किरण
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