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भावनाओं, संदेनाओं और विचारों के स्पर्श यूँ तो दिखते नहीं हैं, मगर उनकी छाप सबसे गहरी हैं। कुछ स्मृतियाँ मस्तक पटल पर चिर- स्थायी रहती हैं और जीवन के ताने- बाने में हमेशा साथ साथ चलती दिखाई देती हैं। अहसासों की एक दुनियाँ हमेशा साथ- साथ चलती है जो मानव मन को हमेशा स्फूर्त रखती है और आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। उन अहसासों का कोई आदि या अंत नहीं होता पर ऐसा लगता है एक सजीव चेहरा है जो आपके हर पल में आपके साथ चल रहा है आपके साथ खड़ा है।
"स्पर्श " की क्षणिकाओं की रचना इसी एहसास को मन में लेकर की गयी है जो नितांत तत्कालीन होते हुए भी मन की, मन से, मन के लिए निकली आवाज़ों के शब्द हैं। यूँ तो जीवन ढलती शाम ही रहा पर कुछ रोशन दिए ढलती शामों के जीवन को स्पर्श देकर एक नयी पहचान सी तो दे ही गए। यादों और साथ की खुशबू समेटे हुए ये "स्पर्श " यूँ ही रचे जाते रहेंगे , गाये जाते रहेंगे।
डॉ मनीश सेमवाल
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