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भूमिका
हम इतिहास के प्राचीन झरोखों पर नजर डालें तो स्पष्ट हो जाता है कि एक रचनाकार की कलम उस कालखंड ,परिवेश और आसपास के वातावरण के अनुरूप ही ढलती है। जरा सोचें, यदि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्री रामचंद्र वन में न गए होते तो रामायण जैसे आदि काव्य का निर्माण कैसे हो पाता ।यदि पांडव वनवास न बिताते तो इतिहास की धारा भला कैसे प्रवाहित होती? माने जब-जब कवि रोया है। काव्य बना है। वाल्मीकि रोए तो रामायण बनी। कालिदास रोए तो शकुंतला बनी। जहां प्रकृति भी आंसू बहाती है ।भवभूति के उत्तर रामचरित में रपिग्रावारोदित्यपि..। श्लोक में कवि ने पत्थर को भी रुलाया है। इस प्रकार रचनाकार के अंतर्मन को झकझोर देने वाली परिस्थितियां ही उनके काव्य का मुख्य आधार होती हैं। उनके जीवन में घट रही घटनाओं, आसपास के वातावरण और काल -परिवेश के अनुरूप उनकी रचनाएं एक सांचे में ढलती हैं। ऐसी ही स्थिति "काव्य-सरिता" नामक इस प्रथम भाग के प्रकाशन से जुड़ी हैं। इसमें प्रकृति- संरक्षण , मानवीय और सामाजिक सरोकारों को बढ़ावा देने तथा अन्याय, अत्याचार, छल व ईर्ष्या से दूर रहने की बात पर बल दिया है साथ ही विभिन्न अवसरों पर लिखी कविताएं व गीत रचे गए हैं। आज का व्यक्ति स्वयं के दुखों से नहीं बल्कि दूसरों की खुशियों से दुःखी हैं। आज ईर्ष्या, द्वेष और अन्याय का सर्वत्र बोलबाला बढ़ता जा रहा है ।जब कोई अपने शॉर्टकट के माध्यम से सफल नहीं हो पाता तो वह दूसरों की उन्नति और उनके मन -मस्तिष्क के विचारों को चुराने लगता है तथा साइबर से जुड़े अपराध कर अपने को महामानव घोषित करता है। उसके बाद दूसरों की निजी जानकारियों को छल रुप में बदल-बदल कर निंदनीय खलनायक के रूप में गुप्त रीति(चोर बाजार से) सार्वजनिक कर दिया जाता है। यक़ीनन जब लोग सफल लोगों का विरोध करना आरंभ करते हैं। तभी सही मायने में उसे इस बात का अहसास होता है कि वह वास्तव में सफलता की ओर जाने वाले मार्ग का अनुसरण कर रहा है। जब हम कोई काज ही नहीं करेंगे तो विरोध-समर्थन किसका होगा? इसलिए संघर्ष ही जीवन है। यह वाक्य हमारे जीवन के करीब होना चाहिए । संघर्षों और संकटों से घिरा व्यक्ति अपनी साधना और बुद्धि -चातुर्य के बल पर आगे बढ़ता है। श्रेष्ठ व्यक्ति हार या जीत की चिंता किए बिना अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर रहता है। मुझे यहां हिंदी की प्रख्यात कवयित्री महादेवी वर्मा जी की रचना" मैं नीर भरी दुःख की बदली "प्रासंगिक लगती हैं-
" विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली।"
हमारे कार्यों को दुनिया माने या न माने हमें अपने कर्तव्य- कर्म को निरंतर जारी रखना चाहिए। ऐसा ही कवि- कर्म से जुड़ा एक लघु प्रयास किया है "काव्य -सरिता" रचना में जिसमें एक -दो वर्षों में लिखी कुछेक कविताओं और गीति रचनाओं को स्थान दिया गया है। यहां हमारी धरती मां के संरक्षण तथा प्रकृति -प्रेम के साथ ही जीवन में हुई धोखेबाजी, छल, अन्याय ,अत्याचार जैसे विषयों पर कुछ रचनाएं रची गई हैं। आज किसी के जीवन को पतन के मार्ग की ओर ले जाना तो बहुत आसान है किंतु यदि हम किसी के जीवन को उन्नति की ओर अग्रसर करें तो वही सच्ची मानवता है। माने तोड़ना आसान है। जोड़ना मुश्किल। जो दूसरों का अहित करता है। वह स्वयं भी सदा भ्रमित और मानसिक विकारों का शिकार बन जाता है ।आज यदि कोई व्यक्ति स्वयं के कर्मों से दुःखी होता है तो वह अपने जीवन में आए संकटों की तरह ही दूसरों को भी दुःखी देखना चाहता है । यहां मेरे गीत की चंद पंक्तियां स्मरण हो आती हैं-
" जीवन का कैसा मोड़ यहां रे
नीचे गिराओ रीति यहां रे
हम ना पीएं तो दूजा न पीए
हमने जो होगा यह भी तो भोगे।"
सच में ऐसे संकीर्ण विचार हमारी सोच को दर्शाते हैं। इस छोटी सी पुस्तक में गेय रूप के अनुरूप गीतों की सर्जना की है। एक कविता को छोड़कर शेष सभी गेय रुप के अनुसार रची गई हैं।"काव्य-सरिता"नामक इस पुस्तक में जहां कोरोना काल में धैर्य के साथ निरंतर आगे बढ़ने की बात कही है तो वही "समंदर सा गहरा हो विश्वास ऐसा" रचना में पारिवारिक ताने-बाने को बुना है। इसी प्रकार किताबें, प्रकृति- संरक्षण, मकर संक्रांति, दीपोत्सव, जीवन के दो पल व जीवन की कड़ियां जैसी गीतियां और कविताएं यहां संग्रहीत की गई हैं। इस प्रकार यह पुस्तक जीवन के कठिन वक्त को बिताते हुए धैर्य का पाठ पढ़ाती है। विपदाओं से गिरे मानव को आगे बढ़ने की सीख देती है। अन्याय और छल- बल से पीड़ित एक इंसान को मां की ममतामयी मीठी लोरियां की भांति जीने का सहारा देती हैं। इन छोटी-छोटी रचनाओं का एक ही उद्देश्य रहा है कि हमें सकारात्मक सोच के साथ निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए ।हम चाहे जीवन के दोराए पर खड़े हों या चौराहे पर अपने बुद्धि- कौशल से अपने कर्तव्य पथ पर बढ़ते रहना चाहिए। सच्चे अर्थों में तभी हम एक सफल पथिक बन पाएंगे। परमात्मा ने हमें बहुत सी खूबियां भी दी हैं तो ऐसे में खूबियों को तलाशें और अपने जीवन को अपने लक्ष्य की ओर ले जाएं। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हर काली रातों के पीछे सुख का सवेरा भी होता है। जो सदा समय को अपने अनुरूप थामने की बातें करते हैं। उनके लिए....। महान् नाटककार भास ने लिखा है-
"चक्रार् पंक्तिरिव गच्छति भाग्य पंक्ति:।" अर्थात् मनुष्य की भाग्य दशा गाड़ी के पहियों की भांति कभी ऊपर तो कभी नीचे चलती है। इसी प्रकार जीवन में कभी दुःख रुपी काली रातें तो कभी खुशियों भरा सवेरा भी होता है।
ममतामयी मां श्रीमती यमुना देवी जी एवं पूज्यपाद पिताश्री पंडित श्री लक्ष्मी नारायण जी शर्मा के शुभ आशीर्वाद का प्रतिफल है -यह प्रकाशन।
इस प्रकाशन में तकनीकी विशेषज्ञ की भूमिका निभाई पुत्र चि. सौम्य शर्मा ने। इतनी कम उम्र में ही आईटी के क्षेत्र में गहरा हूनर रखने वाले इस बच्चे को यथोचित सम्मान मिले, ऐसी प्रभु से प्रार्थना है ।इसी प्रकार मेरी धर्मपत्नी श्रीमती सरिता जी शर्मा और पुत्र चि.प्रियांशु शर्मा को भी साधुवाद ,जिन्होंने मेरा हर समय उत्साहवर्धन कर काव्य- रसास्वादन और सृजन के लिए लिए मुझे आजादी दी। उन्हें ढेरों शुभकामनाएं। विद्वज्जनों से विनम्र प्रार्थना है कि मानव स्वभाववश त्रुटियां रह जाना स्वाभाविक हैं। ऐसे में कहीं त्रुटियां रह गई हों तो कृपया वे मुझे क्षमा करेंगे "सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया:" की मंगल कामनाओं के साथ ही अमेजन का भी आभार जिनके माध्यम से पाठकों तक इस लघु कविता - गीति संग्रह " काव्य - सरिता" नामक पुस्तक के प्रथम भाग का प्रकाशन संभव हो सका है।
गच्छत: स्खलनं क्वापि...।
डॉ.शंकरलाल शास्त्री
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