You can access the distribution details by navigating to My pre-printed books > Distribution
भूमिका
हम इतिहास के प्राचीन झरोखों पर नजर डालें तो स्पष्ट हो जाता है कि एक रचनाकार की कलम उस कालखंड ,परिवेश और आसपास के वातावरण के अनुरूप ही ढलती है। जरा सोचें, यदि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्री रामचंद्र वन में न गए होते तो रामायण जैसे आदि काव्य का निर्माण कैसे हो पाता ।यदि पांडव वनवास न बिताते तो इतिहास की धारा भला कैसे प्रवाहित होती? माने जब-जब कवि रोया है। काव्य बना है। वाल्मीकि रोए तो रामायण बनी। कालिदास रोए तो शकुंतला बनी। जहां प्रकृति भी आंसू बहाती है ।भवभूति के उत्तर रामचरित में रपिग्रावारोदित्यपि..। श्लोक में कवि ने पत्थर को भी रुलाया है। इस प्रकार रचनाकार के अंतर्मन को झकझोर देने वाली परिस्थितियां ही उनके काव्य का मुख्य आधार होती हैं। उनके जीवन में घट रही घटनाओं, आसपास के वातावरण और काल -परिवेश के अनुरूप उनकी रचनाएं एक सांचे में ढलती हैं। ऐसी ही स्थिति...
Currently there are no reviews available for this book.
Be the first one to write a review for the book काव्य-सरिता.