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प्रभु की अपार कृपा से, पूज्य पापा जी श्री सतपाल खुराना और मेरी हिन्दी अध्यापिका श्रीमती रोशनी शर्मा जी के आशीर्वाद से, दिवंगत बड़े भैया डॉ. अशोक खुराना की प्रेरणा से, परिवार के सभी आदरणीय एवं प्रिय सदस्यों के सहयोग से, मित्रों के उत्साहवर्धन से मुझे आज एक कवयित्री के रूप में पुन: अपनी पुस्तक की प्रस्तावना लिखने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। मैं सबके प्रति हृदय से आभारी हूँ।
बचपन में जब उंगलियाँ कलम पकड़ती हैं, तब लिखना तो सभी सीखते हैं, परन्तु लेखन में रुचि सबकी नहीं होती। जब होश सम्भाला तो लेखन से अनभिज्ञ थी, लेकिन कक्षा में जब किसी विषय पर निबंध लिखना होता था, तो मैं पुस्तक में जो लिखा होता था या कक्षा में जो लिखवाया जाता था, उसमें अक्सर कुछ पंक्तियाँ अपनी तरफ से जोड़ दिया करती थी, जिन्हें पढ़कर मेरी अध्यापिकाएँ मेरी बहुत सराहना करतीं एवं मुझे और अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करतीं। लेकिन आगे चलकर, आयुर्विज्ञान छात्रा होने के कारण लेखन छूट गया। इसी विषय में पढ़ते हुए आयुर्वेदाचार्या की उपाधि ली।
पारिवारिक एवं हॉस्पिटल की जिम्मेदारियाँ निभाने में लेखन छूटा, लेकिन लेखन में रुचि खत्म नहीं हुई। जब भी मन परेशान होता, कुछ समय के लिए कलम को अपना साथी बना, पन्नों को अपना हमराज़ बना लेती।
मेरी यह पुस्तक अपने नाम "दिल से" को चरितार्थ करती है। मैंने अपने दिल के भावों को लफ़्ज़ों की माला में पिरोकर कुछ कविताओं के रूप में इस पुस्तक में लिखा है। साहित्य एवं व्याकरण का मुझे गहरा ज्ञान नहीं है, केवल अपने दिल के जज़्बातों को अल्फ़ाज़ों का रूप दिया है।
मैं आशा करती हूँ कि आपको मेरी कविताएँ पसंद आएँगी और इनमें अपने मनोभाव महसूस होंगे। आप सबका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ मेरा मनोबल बढ़ाएँगी और मुझे निरंतर लिखने के लिए प्रेरित करेंगी।
शुभाशीष की आकांक्षी,
डॉक्टर श्वेता सूद 'मधु'
लुधियाना (पंजाब)
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