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भूमिका
स्त्री विमर्श आधुनिक युग के साहित्यिक, सामाजिक और सांस्कृतिक चिंतन का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुका है। यह विमर्श न केवल महिलाओं के अधिकारों और उनके संघर्षों को केंद्र में रखता है, बल्कि एक समतामूलक समाज की संरचना का मार्ग भी प्रशस्त करता है। "स्त्री विमर्श और साहित्य के सरोकार" पुस्तक इसी विचारधारा को केंद्रित कर लिखी गई है। यह पुस्तक साहित्य के माध्यम से स्त्रियों की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक स्थिति का विश्लेषण करती है और उनके अधिकारों, आकांक्षाओं और संघर्षों को उजागर करती है।
सदियों से, समाज में महिलाओं की स्थिति को उनकी पारंपरिक भूमिकाओं तक सीमित रखा गया है। साहित्य, जो समाज का दर्पण है, ने भी इस सोच को समय-समय पर प्रकट किया है। प्राचीन साहित्य में स्त्रियों को देवी, पत्नी और माँ के रूप में महिमामंडित किया गया, लेकिन उनकी वास्तविक समस्याओं और अस्तित्व की चुनौतियों को अनदेखा किया गया। आधुनिक युग में, जब महिलाओं ने शिक्षा, स्वतंत्रता और समानता के लिए आवाज उठानी शुरू की, तब साहित्य ने भी उनके संघर्षों और उनके सरोकारों को मुखर रूप से प्रस्तुत करना आरंभ किया।
यह पुस्तक स्त्री विमर्श के ऐतिहासिक और साहित्यिक विकास को विस्तार से समझाने का प्रयास करती है। इसमें यह चर्चा की गई है कि कैसे साहित्य ने समय के साथ स्त्रियों के प्रति समाज की सोच को प्रभावित किया है और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाई है। पुस्तक में महादेवी वर्मा, इस्मत चुगताई, अमृता प्रीतम, और मृदुला गर्ग जैसे लेखकों के कार्यों का विश्लेषण किया गया है, जिन्होंने अपने लेखन के माध्यम से स्त्रियों के मुद्दों को गहराई से उजागर किया।
स्त्री विमर्श केवल महिलाओं के अधिकारों की बात नहीं करता, बल्कि समाज के प्रत्येक वर्ग में लैंगिक समानता स्थापित करने की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है। इस पुस्तक में यह दर्शाया गया है कि कैसे महिलाओं की समस्याएँ केवल व्यक्तिगत मुद्दे नहीं हैं, बल्कि वे समाज के व्यापक ढांचे को प्रभावित करती हैं। साहित्य के माध्यम से इन समस्याओं का समाधान खोजने का प्रयास न केवल महिलाओं के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए आवश्यक है।
यह पुस्तक शोधार्थियों, छात्रों और आम पाठकों के लिए समान रूप से उपयोगी है। इसकी भाषा सरल, प्रभावी और पठनीय है, जिससे यह विषयवस्तु को गहराई से समझने में सहायक होती है। लेखक ने विषय के हर पहलू को विस्तार से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, जिससे पाठक स्त्री विमर्श के महत्व को बेहतर ढंग से समझ सके।
"स्त्री विमर्श और साहित्य के सरोकार" पुस्तक उन सामाजिक और साहित्यिक प्रयासों का दस्तावेज है, जो समाज में स्त्रियों के अधिकारों को मान्यता दिलाने और उनके अस्तित्व को सम्मान देने की दिशा में किए गए हैं। यह पुस्तक न केवल स्त्रियों के मुद्दों को समझने का माध्यम है, बल्कि एक बेहतर और समानता आधारित समाज के निर्माण के लिए प्रेरणा भी प्रदान करती है।
इस पुस्तक के माध्यम से, यह स्पष्ट होता है कि स्त्री विमर्श केवल साहित्य का विषय नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन है, जो स्त्रियों को उनकी वास्तविक पहचान और स्वतंत्रता प्रदान करने की दिशा में प्रयासरत है।
संपादिका
डॉ सिंधु सुमन
बिहार
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