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भूमिका
स्त्री विमर्श आधुनिक युग के साहित्यिक, सामाजिक और सांस्कृतिक चिंतन का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुका है। यह विमर्श न केवल महिलाओं के अधिकारों और उनके संघर्षों को केंद्र में रखता है, बल्कि एक समतामूलक समाज की संरचना का मार्ग भी प्रशस्त करता है। "स्त्री विमर्श और साहित्य के सरोकार" पुस्तक इसी विचारधारा को केंद्रित कर लिखी गई है। यह पुस्तक साहित्य के माध्यम से स्त्रियों की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक स्थिति का विश्लेषण करती है और उनके अधिकारों, आकांक्षाओं और संघर्षों को उजागर करती है।
सदियों से, समाज में महिलाओं की स्थिति को उनकी पारंपरिक भूमिकाओं तक सीमित रखा गया है। साहित्य, जो समाज का दर्पण है, ने भी इस सोच को समय-समय पर प्रकट किया है। प्राचीन साहित्य में स्त्रियों को देवी, पत्नी और माँ के रूप में महिमामंडित किया गया, लेकिन उनकी वास्तविक समस्याओं और अस्तित्व की चुनौतियों को अनदेखा किया गया। आधुनिक युग में, जब...
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