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भारतीय आर्थिक दर्शन एवं पश्चिमी आर्थिक दर्शन में भिन्नत्ता (eBook)

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारतीय आर्थिक दर्शन की बढ़ती महत्ता
Type: e-book
Genre: Business & Economics
Language: Hindi
Price: ₹499
(Immediate Access on Full Payment)
Available Formats: PDF

Description

श्री प्रहलाद सबनानी द्वारा रचित इस पुस्तक में भारत के प्राचीन काल एवं वर्तमान काल में आर्थिक विकास तथा वर्तमान में भारत के पूरे विश्व में आर्थिक शक्ति के रूप में उभरने के सम्बंध में बहुत विस्तार से वर्णन किया गया है। प्राचीनकाल में भारत में सूक्ष्म अर्थशास्त्र का विचार किन नीतियों पर आधारित था तथा किस प्रकार इन नीतियों को अपनाकर वृहद्द अर्थशास्त्र के क्षेत्र में भारत के बुरे समय में आर्थिक समस्याओं का हल निकालने में सफलता अर्जित की जाती रही है, इस विषय को बहुत ही सरलता से वर्णित किया गया है। आज जब पूरे विश्व में आर्थिक विकास की दर कम हो रही है एवं कई विकसित तथा अन्य देश मंदी की आशंका से ग्रस्त हैं, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का विचार है कि भारत में मंदी की शून्य सम्भावना है। भारत आज वैश्विक स्तर पर बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है।

भारत में वृहद्द अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अद्वितीय विकास मॉडल, जो सनातन भारतीय संस्कृति एवं सदाचारी परम्पराओं पर आधारित है, का वर्णन बहुत सहज तरीके से किया गया है। हाल ही के समय में, भारत ने आर्थिक विकास के क्षेत्र में अतुलनीय प्रगति की है। यह इसलिए सम्भव हो सका है क्योंकि भारत ने पश्चिमी आर्थिक विकास मॉडल, जो अदूरदर्शी है, अर्थ एवं काम केंद्रित है, गलाकाट प्रतिस्पर्धा, अधिक लाभ अर्जन के सिद्धांतो पर आधारित है, एवं इसमें उपभोगवाद का बोलबाला एवं प्रकृति का शोषण स्पष्टत: दिखाई देता है, के स्थान पर भारतीय आर्थिक दर्शन  जो धर्म आधारित रहा है, जिसके कारण भारत में भव्यता के स्थान पर दिव्यता को अधिक महत्व दिया जाता रहा है एवं यह सर्वांगीण एवं आर्थिक मानवतावाद के सिद्धांतों पर आधारित हैं, को लागू करने का प्रयास किया है। भारत के वैश्विक स्तर पर एक आर्थिक महाशक्ति होने के एतिहासिक संदर्भों का वर्णन किया गया है तथा पश्चिमी आर्थिक दर्शन एवं भारतीय आर्थिक दर्शन में भिन्नत्ता को विस्तार से समझाया गया है।आर्थिक विकास के लिए आर्थिक एवं गैर-आर्थिक कारकों को समान रूप से जिम्मेदार बताया गया है। पश्चिमी राष्ट्र सनातन भारतीय परम्पराओं पर आधारित संतुलित एवं दीर्घकालिक विकास मॉडल से अनभिज्ञ रहे हैं। पश्चिम में पूंजीवाद के प्रति घटते रुझान एवं पूंजीवाद पर आधारित पश्चिमी आर्थिक सिद्धांतों के पालन से अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर हो रहे प्रभाव का विशेष वर्णन भी एक विशेष अध्याय में किया गया है। साम्यवाद, पूंजीवाद के आर्थिक मॉडल के बाद, आज तीसरे आर्थिक मॉडल की आवश्यकता महसूस की जा रही है।  

यह पुस्तक आर्थिक विकास को आंकने के विभिन्न पश्चिमी एवं भारतीय मॉडल से तो अवगत कराती ही है, साथ ही, आर्थिक विकास को आंकने के कुछ नए मॉडल का सुझाव भी देती है। यह पुस्तक संक्षिप्त परिकल्पना के विश्लेषण पर आधारित नहीं है परंतु भारत अपनी सनातन संस्कृति एवं परंपराओं का पालन करते हुए किस प्रकार अपने आर्थिक विकास को गति दे सकता है, इस विषय पर विचार किया गया है। साथ ही, देश में आर्थिक विकास को गति देने के सम्बंध में भी कुछ नए मॉडल सुझाए गए हैं। भारतीयता के 'स्व' को जगाने, स्वदेशी को बढ़ावा देने, सर्वसमावेशी विकास, ग्रामीण स्तर तक स्वावलम्बन हासिल करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। हाल ही में भारत ने कई क्षेत्रों में पूरे विश्व को राह दिखाई है, जैसे गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में , वित्तीय समावेशन से भारत में गरीब वर्ग का कायाकल्प हो रहा है, सनातन संकरों के पालन से भारत में छोटी छोटी बचतों को प्रत्साहन मिल रहा है, भारत में डिजिटल क्रांति अन्य देशों के लिए उदाहरण बन रही है, भारतीय संस्कारों को अपनाकर भारतीय मूल के नागरिक विभिन्न देशों में सफल हो रहे हैं, जैसे विषयों का वर्णन भी इस पुस्तक में किया गया है।

लेखक की अर्थशास्त्र विषय में गहरी समझ, इस विषय पर गहरा अध्ययन एवं बैंकिंग क्षेत्र में वृहद्द अनुभव, स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। अर्थशास्त्र से संबंधित जटिल विषयों को सामान्य भाषा में सुस्पष्ट विश्लेषण करते हुए प्रस्तुत किया गया है, जिसे आम नागरिक भी बहुत आसानी से समझ सकते हैं। आर्थिक विषयों पर हिंदी भाषा में बहुत कम लिखा जाता है अतः यह पुस्तक प्रत्येक भारतीय द्वारा पढ़ी जानी चाहिए, इसमें दिए गए विभिन्न विषयों पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए एवं भारत को विश्व गुरु बनाने में अपना योगदान देना चाहिए। यह पुस्तक भारत के नीति निर्धारकों, अर्थशास्त्रियों, व्यवसाईयों, अनुभवी व्यक्तियों, विद्यार्थियों, ग्रहणियों एवं समस्त नागरिकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

About the Author

श्री प्रहलाद सबनानी, उप-महाप्रबंधक के पद पर रहते हुए भारतीय स्टेट बैंक, कारपोरेट केंद्र, मुम्बई से सेवा निवृत हुए है। आपने बैंक में उप-महाप्रबंधक (आस्ति देयता प्रबंधन), क्षेत्रीय प्रबंधक (दो विभिन्न स्थानों पर) पदों पर रहते हुए ग्रामीण, अर्ध-शहरी एवं शहरी शाखाओं का नियंत्रण किया। आपने शाखा प्रबंधक (सहायक महाप्रबंधक) के पद पर रहते हुए, नई दिल्ली स्थिति महानगरीय शाखा का सफलता पूर्वक संचालन किया। आप बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग, कारपोरेट केंद्र, मुम्बई में मुख्य प्रबंधक के पद पर कार्यरत रहे। आपने बैंक में विभिन पदों पर रहते हुए 40 वर्षों का बैंकिंग अनुभव प्राप्त किया। आपने बैंकिंग एवं वित्तीय पत्रिकाओं के लिए विभिन्न विषयों पर लेख लिखे हैं एवं विभिन्न बैंकिंग सम्मेलनों (BANCON) में शोधपत्र भी प्रस्तुत किए हैं।

श्री सबनानी ने व्यवसाय प्रशासन में स्नात्तकोतर (MBA) की डिग्री, बैंकिंग एवं वित्त में विशेषज्ञता के साथ, IGNOU, नई दिल्ली से एवं MA (अर्थशास्त्र) की डिग्री, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर से प्राप्त की। आपने CAIIB, बैंक प्रबंधन में डिप्लोमा (DBM), मानव संसाधन प्रबंधन में डिप्लोमा (DHRM) एवं वित्तीय सेवाओं में डिप्लोमा (DFS) भारतीय बैंकिंग एवं वित्तीय संस्थान (IIBF), मुंबई से प्राप्त किया। आपको भारतीय बैंक संघ (IBA), मुंबई द्वारा प्रतिष्ठित “C.H.Bhabha Banking Re-search Scholarship” प्रदान की गई थी, जिसके अंतर्गत आपने “शाखा लाभप्रदता - इसके सही आंकलन की पद्धति” विषय पर शोध कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न किया। आप तीन पुस्तकों के लेखक भी रहे हैं - (i) विश्व व्यापार संगठन: भारतीय बैंकिंग एवं उद्योग पर प्रभाव (ii) बैंकिंग टुडे एवं (iii) बैंकिंग अप्डेट

Book Details

Publisher: Self Publishing
Number of Pages: 169
Availability: Available for Download (e-book)

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भारतीय आर्थिक दर्शन एवं पश्चिमी आर्थिक दर्शन में भिन्नत्ता

भारतीय आर्थिक दर्शन एवं पश्चिमी आर्थिक दर्शन में भिन्नत्ता

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Prashant Chitnis 1 year, 3 months ago

भारतीय आर्थिक दर्शन एवं पश्चिमी आर्थिक दर्शन में भिन्नत्ता .........प्रहलाद सबनानी

I found this book very interesting and informative. It presents a step by step development of Indian Economy and illustrate different Models. To add attraction, many small stories, poems and quotes of renound Economists, Thinkers, Social reformers is given appropriately. It gives latest facts and statistics about various contries, their economic models and experiences. A must read and essential reference book for your shelf.

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