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पुस्तक 'नामवर' में बलराम गुमास्ता की तेईस कविताएं संग्रहीत हैं। इनकी कविता में हमारे समय के सवालों से जूझने की एक तिर्यक कोशिश है। बात करने का एक अलग सा अंदाज है। वस्तुत: इनकी कविता में विडम्बना एक केन्द्रीय गुण की तरह मौजूद है। आइरनी का इस्तेमाल इनकी कविता में बहुत धीमी आवाज के साथ हुआ है। इनकी कविता थोड़ा लिखा-बहुत समझना के अंदाज में अपनी अस्मिता को अर्जित करना चाहती है। उनकी कविता ने बहुत से पाठकों और श्रोताओं के मन में अपने लिए जगह बनाई है। ये कविताएं विचारप्रधान कविताएं हैं।
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