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प्राणायाम कई प्रकार के होते हैं और जितने प्रकार के प्राणायाम हैं, उन सबमें पूरक, रेचक और कुंभक भी भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। पूरक नासिका से करने में हम दाहिने छिद्र का अथवा बाएँ का अथवा दोनों का ही उपयोग कर सकते हैं । रेचक दोनों नासारंध्रों से अथवा एक से ही करना चाहिए। कुंभक पूरक के भी पीछे हो सकता है और रेचक के भी अथवा दोनों के ही पीछे न हो तो भी कोई आपत्ति नहीं। पूरक, कुंभक और रेचक के इन्हीं भेदों को लेकर प्राणायाम के अनेक प्रकार हो गए हैं।
पूरक, कुंभक और रेचक कितनी-कितनी देर तक होना चाहिए, इसका भी हिसाब रखा गया है। यह आवश्यक माना गया है कि जितनी देर तक पूरक किया जाए, उससे चौगुना समय कुंभक में लगाना चाहिए और दूना समय रेचक में अथवा दूसरा हिसाब यह है कि जितना समय पूरक में लगाया जाए उससे दूना कुंभक में और उतना ही रेचक में लगाया जाए।
प्राणायाम के अभ्यास के लिये कोई सा उपयुक्त आसन चुन लिया जाता है, जिसमें सुखपूर्वक पालथी मारी जा सके और मेरुदंड सीधा रह सके। प्राणायाम में सबसे अधिक प्रचलित आसन हैं सिद्धासन व पद्मासन।
आसनों की एक लंगी सूची हैए यथा-
नाड़ीशोधन, भस्त्रिका, उज्जायी, भ्रामरी, कपालभाती, केवली, कुंभक, दीर्घ, सीतकारी, शीतली, मूर्च्छा, सूर्यभेदन, चंद्रभेदन, प्रणव, अग्निसार, उद्गीथ, नासाग्र, अनुलोम-विलोम प्राणायाम इत्यादि। प्रस्तुत पुस्तक में हमने प्रचलित व उपयोगी प्राणायाम का समावेश किया है जिससे कि सभी पाठक पढ़-समझकर इनसे अधिक-से-अधिक लाभ उठा सकें।
एक पठनीय, उपयोगी व संग्रहणीय ग्रंथ।
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