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ठहरो अभी तो जीना शुरू किया है (eBook)

Type: e-book
Genre: Poetry
Language: Hindi
Price: ₹250
(Immediate Access on Full Payment)
Available Formats: PDF

Description

बड़ी खामोशी से गुजर रही थी जिंदगी , कि किसी ने जैसे वक्त के सीमित होंने का अहसास करा दिया। बस गुजरते समय को पंख लग गए और जिंदगी में ठहराव आ गया। दोनों एक दूसरे के विरोधाभासी भाव हैं , जिंदगी में ठहराव कुछ इस सेन्स में आया कि कुछ कर गुजरना है तो वक्त नहीं है और वक्त को पंख इसलिए लगे कि कुछ करने के लिए सिर्फ दौड़ने से काम नहीं चलेगा उड़ाना पडेगा। ऊपर वाले ने इंसान को कल्पना के पंख दिए हैं जिस से वह उड़ान भर ले।
यह जो काम करने का सिलसिला है वही तो मुझे ज़िंदा रखता है। मुझे काम न हो तो थकान हो जाती है , एक अजीब सी आदत हो गयी है अपने एक एक मिनट को अपने पसंद के काम में लगा देने की और तब खुद ब खुद अहसास होता है वक्त बहुत कम है।

हिंदी साहित्य को भी अब बदलाव के दौर से गुजरना होगा। वह समय आ गया है कि इसे खुद को नई पीढ़ी से जोड़ना होगा उसकी सोच से जुड़ना होगा। इस बार पहली बार लिख रहा हूँ कि साहित्य की उस पुरातन धारा के बदल जाने का समय आ गया है। इतना ही नहीं जिसे हम ट्रेडिंशनल साहित्य कह रहे हैं या समझ रहे हैं उसे अपनी केंचुल छोड़नी होगी , अपने खोल से बाहर निकलना होगा।
जब तक नई हवा नहीं बहेगी , रचनाधर्मिता में खुशबू कैसे पैदा होगी।

मेरे लिखने का दो प्रमुख उद्देश्य है।
पहला यह कि रचना में इतनी अपील हो कि पाठक हिंदी साहित्य पढ़ना शुरू कर दें और दूसरा यह कि “प्रयाग” जो साहित्य का केंद्र रहा है एक बार पुनः अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए पहचाना जाए।

वह जो स्त्री है
जिसे तुम देखने ,
समझने
और
जानने का दावा करते हो
मुझे एक बार तुम्हारे
उस देखने और जानने पर
संदेह होता है
हो सके तो
मेरे कहने के बाद एक बार फिर
देख लो स्त्री को
कहीं ऐसा न हो
जब तुम उसे देखने की कोशिश करो
वह तुम्हारी जिंदगी से जा चुकी हो
और तब तुम
सिर्फ उसके कदमों के निशा ख्वाबों
खयालों में ढूढते
अपनी उम्र गुजार दो .

रूहानी ताकतें
रोज मेरे पास आती हैं
तुम्हें
मुझ से छीनने
तुम्हें पाने को
वो
मेरा जिस्म चीर देती हैं
मेरे दिल को फाड़ देती हैं
मेरे लहू को
पी जाती हैं
इसके बाद भी
जब वो तुम्हें
मेरे पास पाती हैं
तो हैरत में पड़ जाती हैं .

न जाने क्यों ,
अब आसमां पर
दरवाजों की जरूरत ठहरी
जज्बात , ख्वाब और खयालों पर
दरवाजे नजर आते हैं ।
वो जो लकड़ी की चौखट हुआ करती थी
गोले बारूद में तब्दील नजर आती है,
क्योंकि दरवाजे पर सी सी टीवी कैमरे टंगे हैं ।
मैं खोलने उतरा हूं
ऐसे ही दरवाजों को
कि तोड़ने उन तालों को
गुम गईं हैं जिनके जज्बातों की
चाबियां ।
गर किसी को
आना और जाना ही नहीं है
तो दरवाजे की
जरूरत क्या है ।

मैं तुम्हारे दिल में
छुपी हुई खामोशी सुन लेता हूं
इसलिए
राइटर हूं ।

हमने माना कि
तुम बहुत बड़े हो
लेकिन
इलेक्ट्रान, प्रोटान और
न्यूट्रॉन से,
मिल कर बने हो ।

(इसी पुस्तक से )

About the Author

नाम: मुरली मनोहर श्रीवास्तव
पिता का नाम: श्री विजय कुमार श्रीवास्तव ( लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार इलाहाबाद)
जन्मस्थान: इलाहाबाद
अध्ययन : बी.ई. मैकेनिकल इंजीनियरिंग (जामिया मिलिया इस्लामिया नई दिल्ली से)
प्रकाशन : नवभारत टाइम्स, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान दैनिक, अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा, नई
दुनिया, मेरे सहेली, जागरण सखी सहित विभिन्न दैनिक व पत्रिका में एक हज़ार से अधिक रचनाएँ
प्रकाशित तथा निरंतर प्रकाशन जारी है।
अभी तक लिखी कहानियाँ मेरी सहेली, जागरण सखी व दैनिक जागरण जैसी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।
व्यंग्य लेखक के रूप में विशिष्ट पहचान हिन्दी की सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। अमर उजाला व राष्ट्रीय सहारा
में नियमित कॉलम।
वर्तमान में एन टी पी सी मेजा में उप महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत

पुस्तकें :
1. सत्य जीतता है (हिन्दी अकादमी दिल्ली से प्रकाशित),
2. सम्भावना (साहित्य वीथी दिल्ली से प्रकाशित, वर्ष -2017 फ़्लिप कार्ट व अमेज़न दोनों पर उपलब्ध)
3. Posibility ( English translation of Sambhavana By Deepak Danish )on kindle
4 . गुरु गूगल दोऊ खड़े pustakbazaar.com द्वारा प्रकाशित
5 . क्षमा करना पार्वती pustakbazaar.com द्वारा प्रकाशित
6 . ख्वाबों की जिंदगी और 63 कविता
7. वह मैं हूँ
8.घोडा ब्रांड क्रिकेटर मेरे 71 व्यंग्य
9. दर्द और ख्वाब
10. दर्द के इम्यूनिटी बूस्टर्स
11. फ़रिश्ते
12.चाँद पर राइटर पेंटर और आर्टिस्ट भेजें
13. मुरली की दुनियां
14. जीत गए तुम
15. कुछ तो कहता हूँ

संप्रति : हर समय कुछ करते रहने की इच्छा का बने रहना व पाठकों द्वारा प्रदान किए जाने वाला स्नेह ही मेरे लिखने का आधार है ।

Book Details

Publisher: Self
Number of Pages: 96
Availability: Available for Download (e-book)

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ठहरो   अभी तो जीना शुरू किया है

ठहरो अभी तो जीना शुरू किया है

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