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बड़ी खामोशी से गुजर रही थी जिंदगी , कि किसी ने जैसे वक्त के सीमित होंने का अहसास करा दिया। बस गुजरते समय को पंख लग गए और जिंदगी में ठहराव आ गया। दोनों एक दूसरे के विरोधाभासी भाव हैं , जिंदगी में ठहराव कुछ इस सेन्स में आया कि कुछ कर गुजरना है तो वक्त नहीं है और वक्त को पंख इसलिए लगे कि कुछ करने के लिए सिर्फ दौड़ने से काम नहीं चलेगा उड़ाना पडेगा। ऊपर वाले ने इंसान को कल्पना के पंख दिए हैं जिस से वह उड़ान भर ले।
यह जो काम करने का सिलसिला है वही तो मुझे ज़िंदा रखता है। मुझे काम न हो तो थकान हो जाती है , एक अजीब सी आदत हो गयी है अपने एक एक मिनट को अपने पसंद के काम में लगा देने की और तब खुद ब खुद अहसास होता है वक्त बहुत कम है।
हिंदी साहित्य...
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