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बच्चों में संस्कार मूलतः घर से पैदा होते हैं | संस्कारों के उत्तम होने से बच्चों के भविष्य की राह सरल हो जाती है | ऐसे माता -पिता जो स्वयं में कर्मठ, कर्तव्यनिष्ठ, सहयोगी व सीखने वाले नहीं हैं उनके बच्चों के आगे बढ़ने के अनेक रास्ते स्वत: ही बंद होने लगते हैं | मनुष्य द्वारा की जा रही सभी अच्छी अथवा गलत गतिविधियााँ उसके मस्तिष्क के द्वारा संचालित होती हैं | यदि मस्तिष्क को इस तरह प्रशिक्षित किया जाय कि वह उपयोगी व सुन्दर हो पाए तो जीवन सुन्दरतम हो सकता है | माता-पिता के बाद बच्चों को जीवन में सफल अथवा असफल बनाने का बड़ा दायित्व शिक्षण संस्थाओं का होता है जो बच्चों की क्षमताओं को निखारने के साथ-साथ उन्हें सामंजस्यपूर्ण तरीके से जीवन जीना सीखाती हैं तथा उन्हें भविष्य के कौशलों से संपन्न बनाती हैं | राजनैतिक व सामाजिक परिस्थितियां राज्य के अंदर अन्वेषण, रोजगार व अमन-चैन का र्निधारण करती हैं | शिक्षण संस्थान का आलीशान दिखना उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना की उसके अंदर ज्ञानी व समर्पित शिक्षाविदों का होना | जो शिक्षाविद स्वयं के ज्ञान को सुधारने हेतु बैचेन नहीं है तथा बच्चों के बीच असहज है उसका संपर्क कैसे बच्चों को बेहतर बना सकता है ? | एक योग्य शिक्षक योग्य बच्चों का तथा एक कन्फ्यूज्ड शिक्षक कन्फ्यूज्ड बच्च्चों का निर्माण करता है | कन्फ्यूज्ड बच्चों का भविष्य मुश्किल में पड़ जाता है और वे असफल होने लगते हैं | चुस्त -दुरुस्त व सहयोगी शिक्षा-व्यवस्था ही भविष्य के समाज को समरसतापूर्ण, आनंदपूर्ण व समृद्ध बनाने के लिए वर्तमान का उन्नत निवेश है | जितनी शीघ्रता से हम इसे महसूस करेंगे उतनी शीघ्रता से हम अपने समाज को संपन्न व विवेकशील बना पायेंगे | ख्याल रहे, सुन्दर विचारों से ही जीवन सुन्दर बनता है |सुन्दर विचार गहन चिंतन व मनन से पैदा होते हैं |समाज हित में गहन चिंतन व मनन वो ही लोग कर पाते हैं जो संस्कारवान हों, योग्य शिक्षकों से दीक्षित हों व अनुभवी हों | संयमित माता-पिता व व योग्य शिक्षक समाज की अमूल्य धरोहर होते हैं, वे बच्चों का उचित मार्गदर्शन कर पाते हैं जिससे बच्चे जीवन में असफल होने से होने से बच जाते हैं |
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